
Haldiram: एक भुजिया की दुकान कैसे बनी ग्लोबल ब्रांड, क्या है हल्दीराम की कामयाबी के पीछे की कहानी?
Haldiram success story in hindi: हल्दीराम के स्नैक्स का हर कोई दीवाना है। पिछले काफी समय से इस ब्रांड के बिकने की अटकलें लग रही थीं। इसके लिए देश-विदेश कई कंपनियों ने बात भी चल रही थी। इनमें टाटा ग्रुप भी शामिल था। अब खबर आ रही है कि सिंगापुर की सरकारी निवेश कंपनी टेमासेक और हल्दीराम (Haldiram Temasek Deal) के बीच 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना तकरीबन फाइनल भी हो गई है। टेमासेक 10 अरब डॉलर के वैल्यूएशन (Haldiram Valuation) पर हल्दीराम के प्रमोटरों से 10 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी। आइए जानते हैं कि हल्दीराम की शुरुआत कैसे हुई और यह एक कामयाब ब्रांड कैसे बनी।
हल्दीराम की शुरुआत कब और कैसे हुई?
राजस्थान के बीकानेर में बरसों पहले भुजिया की एक दुकान खोली गई। इसे चलाते थे मारवाड़ी परिवार से आने वाले भीखाराम अग्रवाल। काम में उनका हाथ बंटाता था 11 साल का भीखाराम का पोता गंगा बिशनजी अग्रवाल (Ganga Bishanji Agrawal)। गंगा बिशनजी को घर में सब हल्दीराम बुलाते। उन्हीं के नाम पर दुकान का नाम भी हल्दीराम भुजिया वाला (Haldiram’s) रख दिया गया।
हल्दीराम ने दादा की दुकान में काम करना इसलिए शुरू किया था कि देख सकें, आखिर भुजिया बनती कैसे है। छोटी उम्र से ही अपनी कंपनी खोलने का शौक था उन्हें, इसलिए जब भी भुजिया बन रही होती, वह बड़े ध्यान से देखा करते। उनकी दुकान पर भुजिया चने के आटे और बेसन से बनती थी। लोगों को वह पसंद भी खूब आ रही थी, लेकिन हल्दीराम को उस भुजिया में मज़ा नहीं आता था।
वह उन्हें बाकी कंपनियों की भुजिया जैसी ही लगती। वह कुछ अलग स्वाद चाहते थे। कुछ ऐसा, जिसका टेस्ट किसी से ना मिलता हो। जो बाकी ब्रैंड और दुकानों की भुजिया से अलग हो। ऐसी भुजिया, जिसके फ्लेवर्स अनोखे हों। खैर, कुछ ही बरसों में हल्दीराम के दादा की दुकान का बीकानेर में अच्छा-खासा नाम हो गया। इधर हल्दीराम ने भी अपनी भुजिया बनाने की कोशिशें जारी रखीं।
88 साल पहले पड़ी हल्दीराम की नींव
हल्दीराम ने कई बार अलग किस्म की भुजिया बनाने के प्रयास किए। अलग-अलग मसालों और सामानों के साथ भुजिया बनाई। बहुत मेहनत के बाद आखिर वह ऐसी भुजिया बनाने में सफल हो गए] जो उन्हें पसंद आ गई। यह मोठ के आटे (moth beans) से बनी थी। भुजिया बन गई तो साल 1937 में उन्होंने खुद की कंपनी खोल ली। नाम वही था, दुकान वाला ही।
हल्दीराम कंपनी का पहला प्रोडक्ट लॉन्च होने वाला था। बस चिंता यह थी कि इसे ज़्यादा से ज़्यादा ग्राहकों तक कैसे पहुंचाया जाए। हल्दीराम यानी गंगा बिशनजी ने मार्केटिंग पर थोड़ा ध्यान दिया। उन्होंने दो जबरदस्त काम किए। पहला तो भुजिया का नाम बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह (Bikaner King) के नाम पर डूंगर सेव (Dongar Sev) रख दिया। अपने नाम की वजह वह सीधे महाराजा से कनेक्ट हो गई। लोगों को लगता, शायद राजा डूंगर का इस भुजिया से कोई संबंध है। लिहाजा लोग सिर्फ नाम के चलते भी यह भुजिया खरीद लेते।
दूसरी वजह डूंगर सेव का दाम था। हल्दीराम ने इस भुजिया की क़ीमत 5 पैसा प्रति किलो रखी। उस वक़्त बीकानेर में भुजिया का रेट 2 पैसा प्रति किलो था। अब चूंकि महाराजा के नाम वाली भुजिया महंगी थी, तो ग्राहकों ने समझा कि यह प्रीमियम क्वॉलिटी की होगी। लोग भर-भरकर इसे खरीदने लगे। 1941 आते-आते बीकानेर के आसपास तक हल्दीराम की भुजिया का स्वाद फैल चुका था।
हल्दीराम की भुजिया ने कमाई के रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। यह एक ब्रांड बन चुकी थी। ब्रांड , जिसके उत्पादों का स्वाद शानदार था। कंपनी लगातार ग्रोथ कर रही थी। अब तक हल्दीराम के कई प्रोडक्ट लॉन्च हो चुके थे। वह अब अपनी कंपनी को बीकानेर से बाहर ले जाना चाहते थे। पहली जगह तय हुई, कोलकाता (Kolkata)।
हल्दीराम परिवार में विवाद कैसे शुरू हुआ?
आगे की कहानी समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि हल्दीराम के तीन बेटे थे, मूलचंद, सत्यनारायण और रामेश्वरलाल। 1950 के दशक में हल्दीराम अपने बेटों सत्यनारायण और रामेश्वरलाल के साथ कोलकाता पहुंचे। साथ में उनका बड़ा पोता शिव किशन भी था। वहां उन्होंने अपने दोनों बेटों को कारोबार में सेटल किया, ‘हल्दीराम भुजिया वाला’ की ब्रांच खोली और वापस बीकानेर आ गए। इधर बीकानेर में उनकी दुकान मूलचंद संभाल रहे थे।
कुछ समय बाद कोलकाता में दोनों भाइयों में अनबन शुरू हो गई। सत्यनारायण ने अलग होकर कोलकाता में ही हल्दीराम एंड संस (Haldiram & Sons) शुरू किया। हालांकि यह उतना सफल नहीं रहा। उधर, रामेश्वरलाल ने भी अपने बड़े भाई मूलचंद से नाता तोड़ लिया। इस तरह बीकानेर और कोलकाता बिजनेस अब अलग-अलग हो गए। यह 60 के दशक की बात है।
काजू-कतली से हल्दीराम ने गाड़े झंडे
यही वो दशक था, जब कंपनी की बागडोर हल्दीराम के पोते शिव किशन अग्रवाल (Shivkisan Agrawal) के पास में आ गई। उन्होंने नागपुर में एक ब्रांच खोली, लेकिन वह उतनी सफल नहीं रही। नागपुर ही नहीं, पूरे महाराष्ट्र में ही भुजिया की कोई डिमांड नहीं थी, लेकिन शिव किशन ने हार नहीं मानी। उन्होंने मार्केट रिसर्च कराई। पता चला कि नागपुर के लोगों के पास स्नैक्स में बहुत विकल्प नहीं हैं। इसी तरह मिठाइयों में भी काफी गुंजाइश थी।
शिव किशन ने अपनी पसंदीदा मिठाई काजू कतली (Kaju Katli price) नागपुर में लॉन्च की। लोगों को इसका स्वाद चखाने के लिए उन्होंने यह मिठाई फ्री में बांटी। धीरे-धीरे नागपुर के लोगों को काजू कतली भाने लगी। इसी तरह उन्होंने कई तरह के स्नैक्स भी लॉन्च किए। तीन साल में ही हल्दीराम की ग्रोथ 400 फ़ीसदी तक बढ़ गई थी।
रिसर्च में यह भी पता चला था कि नागपुर में लोग साउथ इंडियन खाना जैसे- इडली और डोसा भी खूब पसंद करते हैं। शिव किशन ने इस पर भी काम किया और भुजिया, मिठाई के बाद साउथ इंडियन खाना खिलाने के लिए रेस्तरां खोले। फिर उन्होंने समोसा, कचौरी और छोले-भटूरे को भी अपने मेन्यू में शामिल किया। अब तक हल्दीराम ब्रैंड की दुकानें तीन जगह खुल चुकी थीं – बीकानेर, कोलकाता और नागपुर।
मूलचंद के बेटे हल्दीराम को दिया नया रूप
इसके बाद साल 1973 में मूलचंद के बेटे मनोहर लाल अग्रवाल (Manohar lal Agrawal) ने फैमिली बिजनेस जॉइन किया। मनोहर और उनके भाई मधुसूदन ने मिलकर साल 1982 में दिल्ली के चांदनी चौक (Chandni Chowk) में हल्दीराम का स्टोर खोला। सिर्फ यही नहीं, मनोहर लाल ने हल्दीराम के प्रोडक्ट्स की पैकेजिंग और पूरे भारत में उसकी ब्रांच खोलने पर भी काम किया।
1990 से पहले हल्दीराम अपने प्रोडक्ट बिना किसी स्टैंडर्ड पैकेजिंग के बेचा करता था। मनोहर लाल ने इसे बदला। हल्दीराम वह पहली भारतीय कंपनी थी, जिसने पैकेजिंग और प्रोडक्ट की प्रस्तुति पर खास ध्यान दिया। इससे ना सिर्फ उनकी ब्रैंड को लेकर जागरूकता बढ़ी, बल्कि हल्दीराम लोगों के बीच अधिक भरोसेमंद और लोकप्रिय भी बना। साथ ही, हल्दीराम के स्टोर पहले बड़े शहरों फिर छोटी जगहों पर खोले गए।
हल्दीराम के रेस्टोरेंट की भी है धाक
हल्दीराम के अपने रेस्तरां भी चलते हैं, जहां लोकल स्ट्रीट फूड से लेकर हर तरह का खाना मिलता है। कंपनी के मुताबिक, हर साल इसके रेस्तरां औसतन करीब साढ़े तीन अरब लीटर दूध, आठ करोड़ किलोग्राम मक्खन, 6 करोड़ किलो से ज़्यादा आलू और 6 करोड़ किलो शुद्ध घी इस्तेमाल करते हैं।
कंपनी ने कभी भी खुद को सिर्फ भुजिया बनाने तक सीमित नहीं रखा। समय-समय पर कई तरह के स्नैक्स मार्केट में लेकर आई। हल्दीराम के पास आज 410 से भी ज़्यादा प्रोडक्ट हैं। साल 2014 में हल्दीराम को ट्रस्ट रिसर्च एडवाइजरी द्वारा भारत में सबसे अधिक विश्वसनीय ब्रैंड की लिस्ट में 55वें नंबर पर रखा गया था।
साल 1993 में हल्दीराम ने अमेरिका में अपने प्रोडक्ट्स का निर्यात शुरू कर दिया। आज 80 से अधिक देशों में कंपनी का बिजनेस है। वहीं, भारत के स्नैक्स मार्केट में कंपनी की हिस्सेदारी 38 फीसदी से अधिक है। इसके देशभर में 400 से ज़्यादा स्टोर हैं।
हल्दीराम के कितने हिस्से हैं?
आज हल्दीराम मुख्य रूप से तीन हिस्सों में बंटी है। दक्षिण और पूर्वी भारत के कारोबार को कोलकाता से संभाला जाता है, जिसका नाम ‘हल्दीराम भुजियावाला’ है। इसे रामेश्वर लाल के बेटे प्रभु अग्रवाल देखते हैं। पश्चिम भारत का कारोबार ‘हल्दीराम फूड्स इंटरनैशनल लिमिटेड’ से होता है। इसका कंट्रोल है नागपुर में शिव किशन अग्रवाल के पास। और, उत्तर भारत का कारोबार ‘हल्दीराम स्नैक्स एंड एथनिक फूड्स’ नाम से दिल्ली से संभाला जाता है, जिसे मनोहर लाल और मधुसूदन अग्रवाल देखते हैं। इसके अलावा बीकानेर इकाई शिव रतन अग्रवाल के जिम्मे है।
हल्दीराम कितनी सफल कंपनी है, यह इसके रेवेन्यू से भी जाहिर हो जाता है। कंपनी का साल 2024 में अनुमानित रेवेन्यू करीब 78,000 हजार करोड़ रुपये रहा। कुछ समय पहले अटकलें लग रही थीं कि टाटा समूह (Tata Group) की कंपनी टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स (Tata Consumer Products) हल्दीराम में 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीद सकती है। लेकिन, वह डील नहीं हो पाई थी। उस वक्त दोनों कंपनियों के बीच मामला हल्दीराम की वैल्यूएशन पर अटक गया था, जो 10 अरब डॉलर आंकी गई थी। अब इसी वैल्यूएशन पर टेमासेक हल्दीराम में 10 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने वाला है।
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