
Climate Change: जलवायु परिवर्तन से बर्बाद हो जाएगा बैंकिंग सेक्टर? कृषि और होम लोन पर क्या होगा असर
मनीसनी डेस्क, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और बढ़ते तापमान से पर्यावरण पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। लेकिन, यह असर सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है। इससे आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र के भी तबाह होने का खतरा है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक 30 फीसदी कृषि और हाउसिंग लोन में डिफॉल्ट का खतरा (climate change loan default risk 2030) बढ़ सकता है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ जैसी कुदरती आफत आ रही है और कृषि उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है। इस स्थिति का सीधा असर बैंकिंग सेक्टर और लोन चुकाने की क्षमता पर पड़ सकता है।
क्लाइमेट चेंज (Climate Change) क्या है?
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का मतलब है पृथ्वी के तापमान और मौसम के पैटर्न में होने वाले दीर्घकालिक बदलाव। इंसान लगातार कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन का लंबे समय से इस्तेमाल कर रहे है। इनके जलने से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। इसके असर से ग्लोबल टेम्परेचर बढ़ रहा है, जिससे गर्मी की लहरें, बाढ़, सूखा और समुद्री जल स्तर में वृद्धि जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
यह बदलाव सिर्फ पर्यावरण ही नहीं, बल्कि खेती, पानी, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाल रहा है। इसीलिए दुनियाभर की सरकारें जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) अपनाने, पेड़ लगाने और प्रदूषण कम करने जैसे कदम उठाने पर जोर दे रही हैं।
वर्ष | तापमान वृद्धि (°C) | प्रभावित जिले | कृषि और हाउसिंग लोन पर प्रभाव |
---|---|---|---|
2025 | 1.5°C | 180 | ऋण अदायगी में कमी |
2030 | 2.0°C | 321 | 30% लोन पर डिफॉल्ट का खतरा |
2040 | 2.5°C | 450 | बैंकिंग सेक्टर को भारी नुकसान |
कैसे प्रभावित होंगे कृषि और हाउसिंग लोन?
BCG रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 42% जिलों में 2030 तक तापमान में 2°C तक की वृद्धि हो सकती है। इससे कृषि उत्पादन पर भारी असर पड़ेगा, जिससे किसानों की आय में कमी आएगी और कृषि ऋण (Agri Loan) चुकाने की क्षमता घटेगी।
इसी तरह, अत्यधिक गर्मी और बाढ़ के कारण आवासीय संपत्तियों (Housing Assets) का मूल्य गिर सकता है, जिससे होम लोन (Home Loan) डिफॉल्ट का खतरा बढ़ सकता है। घर और मकान काफी ज्यादा डैमेज भी होंगे, जिससे बैंकों के लिए उनकी नीलामी करके लोन की रिकवरी भी मुश्किल हो जाएगी।
क्षेत्र | संभावित प्रभाव | परिणाम |
कृषि ऋण | सूखा, बाढ़, कम उत्पादन |
किसानों की ऋण अदायगी क्षमता घटेगी
|
हाउसिंग लोन | संपत्तियों का मूल्य कम हो सकता है |
होम लोन डिफॉल्ट की आशंका बढ़ेगी
|
बैंकिंग सेक्टर | लोन रीपेमेंट में गिरावट |
बैंकों की वित्तीय स्थिति प्रभावित होगी
|
जलवायु परिवर्तन बैंकों के लिए मौका भी
जलवायु परिवर्तन बैंकों के लिए चुनौती और अवसर दोनों ला सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत को नेट-जीरो लक्ष्य (Net-Zero Goal) हासिल करने के लिए सालाना 150-200 बिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। ऐसे में बैंक इन क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं:
- नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं (Renewable Energy Projects)
- हरित प्रौद्योगिकी (Green Technology)
- जलवायु अनुकूल कृषि (Climate-Resilient Farming)
- हरित आवास ऋण (Green Home Loans)
कृषि और हाउसिंग लोन पर डेटा (2024-25)
सरकारी और बैंकिंग रिपोर्ट के अनुसार:
लोन कैटेगरी | 2024-25 कुल ऋण (लाख करोड़ रुपये) |
संभावित डिफॉल्ट दर (2030 तक)
|
कृषि ऋण | 18.6 लाख करोड़ | 30% |
हाउसिंग लोन | 25.2 लाख करोड़ | 20-25% |
कुल ऋण जोखिम | 43.8 लाख करोड़ | 10-12 लाख करोड़ |
जलवायु परिवर्तन का लोन पर प्रभाव
क्लाइमेंट चेंज का मसला कृषि और होम लोन को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। आइए इसके असर के बारे में जानते हैं:
कृषि ऋण पर प्रभाव
- तापमान वृद्धि: बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत के 42% जिलों (321 जिले) में 2°C तक तापमान बढ़ सकता है। इससे फसलों की पैदावार प्रभावित होगी और किसानों को समय पर कर्ज चुकाने में दिक्कत हो सकती है।
- अत्यधिक वर्षा और सूखा: जलवायु परिवर्तन से बारिश के पैटर्न में बदलाव आ सकता है। इससे बाढ़ और सूखे की घटनाएं बढ़ सकती हैं, जिससे किसानों को बड़ा नुकसान होगा।
- उत्पादकता में गिरावट: उच्च तापमान और जल संकट के कारण फसल उत्पादन में गिरावट होगी। यह किसानों की आमदनी कम करेगी, जिससे ऋण अदायगी मुश्किल होगी।
हाउसिंग लोन पर असर
- तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा: ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। इससे मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में हाउसिंग लोन पर असर पड़ सकता है।
- रियल एस्टेट मूल्य में गिरावट: बढ़ते जलवायु जोखिमों के कारण कुछ क्षेत्रों में रियल एस्टेट की कीमतें गिर सकती हैं। इससे घर खरीदारों के लिए लोन चुकाना मुश्किल हो जाएगा।
- बीमा दरों में वृद्धि: जलवायु जोखिम के कारण बैंक और बीमा कंपनियां प्रीमियम बढ़ा सकती हैं, जिससे होम लोन की लागत बढ़ जाएगी।
अब क्या करेंगे बैंकिंग सेक्टर और सरकार
- एक्सपर्ट का मानना है कि अब बैंक जलवायु परिवर्तन के जोखिम का आकलन करने पर अधिक जोर देंगे। वे ज्यादा रिस्क वाले क्षेत्रों में कर्ज देने की रणनीति बदल भी सकते हैं।
- सरकार कृषि बीमा योजनाओं को बढ़ावा दे सकती है। इससे किसानों को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी। वहीं, बैंकों को भी अपने लोन रिकवरी की अधिक चिंता नहीं रहेगी।
- सरकार हरित ऋण (Green Loans) को अधिक प्रोत्साहन भी दे सकती है। इससे पर्यावरण अनुकूल परियोजनाओं में निवेश हो सके, जो जलवायु परिवर्तन की रफ्तार धीमा करेगा।
- ब्लेंडेड फाइनेंस मॉडल (Blended Finance Model) को भी अपनाया जा सकता है। इससे सार्वजनिक और निजी निवेश का संतुलन बना रहे। ब्लेंडेड फाइनेंस मॉडल में जलवायु परिवर्तन जैसे बड़े वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिए सरकारी और निजी निवेश से पूंजी जुटाई जाती है।
स्रोत (Sources):
- BCG Report on Climate Change & Financial Risk
- Reserve Bank of India (RBI) Reports
- Ministry of Finance, Government of India
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