
Déjà Vu: मेरे साथ ये पहले भी हो चुका है! देजा वू के अनुभव से गुजरने वाले आपके अकेले नहीं
मनीसनी डेस्क, नई दिल्ली। Déjà Vu Experience: फ्रांस के राजा लुई सोलहवें (Louis XVI) का नाम इतिहास में काफी चर्चित है। लुई सोलहवें को बचपन से लगता था कि वह एक दिन गिलोटिन (Guillotine) से मारे जाएंगे। गिलोटिन एक खास किस्म का औजार होता है, जिसका इस्तेमाल पुराने जमाने में मृत्युदंड पाने वाले अपराधियों का सिर धड़ से अलग करने के लिए इस्तेमाल होता था। लुई सोलहवें ने अपने दोस्तों और परिजनों से कई बार कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि उनका अंत गिलोटिन से होगा। और हैरानी की बात जानते हैं क्या है? फ्रांसीसी क्रांति (1789) के बाद लुई सोलहवें को सचमुच गिलोटिन से मौत की सजा दी गई। (सोर्स: Historical Archives of France (1789))
लुई सोलहवें की तरह कई लोगों को लगता है कि उन्हें भविष्य की झलक मिल रही है। यह उनके साथ जो हो रहा है, वो पहले भी हो चुका है। आपको भी कभी न कभी ऐसा तजुर्बा जरूर हुआ होगा। इसे कहते हैं, देजा वू (Déjà Vu)।
देजा वू (Déjà Vu) क्या है?
यह असल में फ्रेंच शब्द है, जिसका मतलब है, ‘पहले देखा हुआ।’ इसमें किसी शख्स को किसी घटना, स्थान या बातचीत को पहले से देखे या सुने होने का आभास करता है। हालांकि, जब हम उस अनुभव को दोबारा सोचते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि वास्तव में ऐसा पहले नहीं हुआ था। यह आमतौर पर कुछ सेकंड्स तक रहता है और फिर गायब हो जाता है।
डॉ. आर्थर फंकहाउजर (Dr. Arthur Funkhouser) ने Déjà Vu को तीन तरह का बताया है।
- Déjà Vécu (पहले जीया हुआ अनुभव)
- Déjà Senti (पहले महसूस किया हुआ)
- Déjà Visité (पहले देखी हुई जगह)
Déjà Vu के पीछे साइंटिस्ट थ्योरी क्या हैं?
साइंटिस्टों ने देजा वू के पीछे कई अहम कारण बताए हैं। आइए एक-एक करके इनके बारे में जानते हैं:
Glitch in Matrix Theory
आपने कियानू रीव्स (Keanu Reeves) की चर्चित फिल्म मैट्रिक्स (Matrix) जरूर देखी होगी। अगर नहीं देखी है, तो आपको जरूर देखनी चाहिए। इसमें दिखाया गया है कि इंसान असल ब्रह्मांड में नहीं, बल्कि एक सिम्युलेशन में रहते हैं। उसे कहते हैं, मैट्रिक्स यानी मायाजाल। यह एक कंप्यूटर प्रोग्राम है। ये दुनिया, पानी, पेड़, समुद्र, जीव सब कुछ एक कम्प्यूटर प्रोग्राम है। जब प्रोग्राम में ग्लिच होता है यानी कोई खराबी आती है, तो हमें देजा वू वाली फीलिंग आती है। हमें लगता है कि यह तो हमारे साथ पहले भी हो चुका है। इसे ही ग्लिच इन मैट्रिक्स थ्योरी कहते हैं।
मस्तिष्क की यादों में भ्रम (Memory Mismatch Theory)
हमारा मस्तिष्क हर समय नई सूचनाओं को प्रोसेस करता है। कभी-कभी यह किसी नए अनुभव को पुरानी यादों से जोड़ देता है, जिससे हमें ऐसा महसूस होता है कि हमने इसे पहले भी देखा या अनुभव किया है। डॉ. क्रिस्टीन स्मिथ (Dr. Christine Smith) और डॉ. एलन ब्राउन (Dr. Alan Brown) की स्टडी यही साबित बताती है कि कभी-कभी मस्तिष्क नई जानकारी को गलती से पहले से मौजूद स्मृति के रूप में पहचान लेता है, जिससे Déjà Vu की फीलिंग आती है।
दिमाग का केमिकल लोचा (Dual Processing Theory)
हमारा दिमाग किसी घटना या तजुर्बे को दो तरह से प्रोसेस करता है। वह कम महत्वपूर्ण घटनाओं को शॉर्ट-टर्म मेमोरी (Short-Term Memory) में सेव करता है, वहीं याद रखने लायक चीजों को लॉन्ग-टर्म मेमोरी (Long-Term Memory) में। कभी-कभी दिमाग किसी नए अनुभव को गलती से लॉन्ग-टर्म मेमोरी में स्टोर कर देता है। इससे मस्तिष्क को महसूस होता है कि यह घटना पहले हो चुकी है। यही गलत पहचान Déjà Vu का कारण बनती है।
इसे आप उदारण से यूं समझिए कि आप किसी रेस्टोरेंट में चाय पीने जाते हैं। इस घटना को आपका मस्तिष्क नए अनुभव के बजाय पुरानी याददाश्त के रूप में दर्ज कर लेता है। इससे आपको ऐसा लगता है कि आप पहले भी इस जगह पर आ चुके हैं, जबकि असल में ऐसा नहीं हुआ है।
सपनों और हकीकत का मेल (Dream Theory)
कई बार, जो हम सपनों में देखते हैं, वह हकीकत में होने वाले अनुभवों से मिलता-जुलता होता है। जब कोई वास्तविक स्थिति हमारे सपने से मेल खाती है, तो हमें ऐसा महसूस होता है कि हमने इसे पहले भी देखा या अनुभव किया है।
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देजा वू से जुड़े रियल लाइफ इवेंट
कई लोग अपने लाइफ में देजा वू का तजुर्बा कर चुके हैं। कुछ अनुभव तो बेहद हैरान करने वाले भी हैं। आइए इनके बारे में जानते हैं:
Déjà Vu ने बचाई थी ड्राइवर की जान (ब्रिटेन, 2016)
इंग्लैंड के लंदन में रहने वाले नथानिएल स्मिथ ने एक दिन अपने ऑफिस जाते समय अचानक महसूस किया कि वह यह रास्ता पहले भी देख चुके हैं। अचानक उन्हें एक दृश्य याद आया जिसमें एक लाल ट्रक तेजी से उसी मोड़ पर आ रहा था जहां वे खड़े थे। उन्होंने डर के कारण तुरंत ब्रेक लगा दिया, और कुछ ही सेकंड बाद वही ट्रक बहुत तेजी से सड़क पार कर गया। अगर नथानिएल ने ब्रेक नहीं लगाया होता, तो उनकी कार ट्रक से टकरा सकती थी। (सोर्स: BBC News (2016), “How Déjà Vu Saved a Man’s Life”)
9/11 हमले से बचने वाला Déjà Vu अनुभव (अमेरिका, 2001)
जोशुआ वेल्स वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में काम करते थे। उन्होंने 11 सितंबर 2001 की सुबह महसूस किया कि उन्होंने पहले भी ऐसा दिन देखा है। जब वे लिफ्ट में चढ़ने वाले थे, उन्हें अचानक एक सपना याद आया, जिसमें वे लिफ्ट में थे और इमारत हिल रही थी। उन्होंने डर की वजह से लिफ्ट में चढ़ने की बजाय बाहर रहने का फैसला किया। कुछ ही मिनट बाद, पहला प्लेन बिल्डिंग से टकराया और लिफ्ट के अंदर फंसे कई लोग नहीं बच सके। (सोर्स: The Guardian (2001), “Survivors of 9/11: The Untold Stories”)
Déjà Vu कौन-कौन महसूस करता है?
- यह अनुभव 60-70% लोगों को अपनी जिंदगी में कभी न कभी होता है।
- युवा लोग, खासकर 15-25 साल के लोग, इसका अनुभव अधिक करते हैं।
- जो लोग ज्यादा यात्रा करते हैं या नई जगहों पर जाते हैं, उन्हें यह अनुभव ज्यादा होता है।
- अधिक तनाव या थकान की स्थिति में Déjà Vu महसूस होने की संभावना बढ़ जाती है।
क्या Déjà Vu किसी गंभीर बीमारी का संकेत है?
अधिकतर मामलों में Déjà Vu सामान्य होता है और चिंता की कोई बात नहीं होती। लेकिन अगर यह बहुत बार हो रहा है, या इसके साथ अन्य लक्षण जैसे भूलने की बीमारी, चक्कर आना या बेहोशी हो रही है, तो यह मिर्गी (Epilepsy) जैसी न्यूरोलॉजिकल समस्या का संकेत हो सकता है। ऐसे में डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।
Déjà Vu का इलाज क्या है?
Déjà Vu का कोई तय इलाज नहीं है, क्योंकि यह कोई बीमारी नहीं बल्कि मस्तिष्क की एक सामान्य प्रक्रिया है। हालांकि, अगर आप इसे कम करना चाहते हैं, तो कुछ उपाय आपकी मदद कर सकते हैं:
- पर्याप्त नींद लें: नींद की कमी मस्तिष्क की प्रोसेसिंग में बाधा डाल सकती है।
- तनाव कम करें: अधिक चिंता और तनाव Déjà Vu की संभावना बढ़ा सकते हैं।
- नियमित व्यायाम करें: दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है।
- मेडिटेशन करें: इससे मस्तिष्क की जागरूकता और नियंत्रण बेहतर होता है।
कुल मिलाकर, Déjà Vu एक रहस्यमय अनुभव है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वास्तव में समय और यादों का कोई छुपा हुआ रहस्य है। हालांकि, वैज्ञानिक इसे मस्तिष्क की प्रोसेसिंग से जुड़ी एक आम घटना मानते हैं। यह मेमोरी ग्लिच, न्यूरल मिसफायर, सपनों, या संभवतः मल्टीवर्स से जुड़ा हो सकता है। कुछ वास्तविक घटनाओं में यह जान बचाने वाला भी साबित हुआ है, जबकि कुछ मामलों में यह भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देता हुआ प्रतीत होता है। भविष्य में न्यूरोसाइंस और क्वांटम भौतिकी में होने वाली खोजें हमें शायद इस रहस्य को और गहराई से समझने में मदद कर सकती हैं।
प्रमुख सोर्स:
- The Déjà Vu Experience: Essays in Cognitive Psychology, 2004)
- Journal of Neuroscience, 1998)
- Three Types of Déjà Vu, 1995)
- Parallel Worlds: A Journey Through Higher Dimensions, 2008)