
Stock Market Dip: शेयर बाजार में पैसे लगाने का समय आ गया, या और गिरावट का करना चाहिए इंतजार?
Stock Market Dip: भारत की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। जीडीपी ग्रोथ का डेटा भी इस बात पर मुहर लगाता है। आर्थिक जानकारों का मानना है कि इस साल भारत वैश्विक आर्थिक विकास की सबसे बड़ी कहानी बन सकता है। इसका कारण मजबूत आर्थिक बुनियाद और निवेशकों को लुभाने वाली सरकारी नीतियां हैं। हालांकि, भारतीय शेयर बाजार काफी अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। बीएसई 500 इंडेक्स अपने सितंबर 2024 के उच्चतम स्तर से करीब 20 फीसदी गिर चुका है। इसने 2024 में 14.8 फीसदी और 2023 में 25.1 फीसदी का तगड़ा रिटर्न दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह केवल एक अस्थायी गिरावट है या भारत का शेयर बाजार लंबे वक्त के लिए सुस्त पड़ गया है। क्या अब निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश शुरू कर देना चाहिए या और भी गिरावट आने का इंतजार करना चाहिए।
भारतीय बाजार में गिरावट के 5 बड़े कारण
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर से अनिश्चिता बढ़ने से निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ।
- वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में कंपनियों के कमजोर नतीजों से निवेशकों में बेचैनी बढ़ी।
- भारतीय शेयर बाजार का वैल्यूएशन काफी अधिक है, इसलिए इसमें बड़े पैमाने पर करेक्शन हुआ।
- अधिक रिटर्न मिलने के कारण FIIs भारतीय बाजार से पैसा निकालकर अमेरिकी बॉन्ड में निवेश कर रहे हैं।
- चीन में आर्थिक सुधार और आकर्षक वैल्यूएशन के चलते FIIs वहां निवेश (सेल इंडिया, बाय चाइना) बढ़ा रहे हैं।
इंडियन इकोनॉमी के सकारात्मक पहलू
वित्त वर्ष 2024-25 की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर 2024) में भारत की आर्थिक वृद्धि 6.2 फीसदी रही। यह दूसरी तिमाही में 5.6 फीसदी पर आ गई थी। इससे पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ग्रोथ की पटरी पर वापस आ रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025 में इनकम टैक्स छूट की लिमिट बढ़ाने जैसे उपाय करके खपत को बढ़ाने की कोशिश की है। इसका भी असर आने वाली तिमाहियों में दिख सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फरवरी 2025 की MPC मीटिंग में अपने रेपो रेट को 6.5 फीसदी से घटाकर 6.25 फीसदी कर दिया। यह कटौती पिछले पांच वर्षों में पहली बार हुई है। यह कदम आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए उठाया गया है। आर्थिक जानकार आने वाले समय में और कटौती का अनुमान लगा रहे हैं। इसका फायदा सीधे तौर खपत बढ़ने के तौर पर दिखेगा।
भारत में निवेशकों की बढ़ती रुचि को समझने के लिए पिछले दशक में हुए आर्थिक और राजनीतिक बदलावों को भी देखना जरुरी है। भारत की विशाल जनसंख्या, बढ़ता मध्य वर्ग और प्रति व्यक्ति अपेक्षाकृत कम जीडीपी ($2,900) भविष्य में आर्थिक विस्तार की संभावनाओं को उजागर करता है। यही वजह है कि दुनियाभर के निवेशक भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
प्रमुख सुधार और आर्थिक नीतियां
नीति/योजना | डिटेल | प्रभाव |
डिजिटलीकरण (UPI, जनधन योजना) | यूपीआई और जनधन खातों की मदद से 2006 में 50% से कम लोगों के पास बैंक अकाउंट था, जो 2021 में बढ़कर 96% हो गया। |
वित्तीय समावेशन बढ़ा, कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला।
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इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश | 2016 में 3 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर 2025 में 11.1 ट्रिलियन रुपये का निवेश। सड़क निर्माण बजट 2014 से 500% बढ़ा। |
रेलवे, पोर्ट, बिजली नेटवर्क में सुधार, आर्थिक वृद्धि तेज।
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मेक इन इंडिया पहल | 2014 में लॉन्च, औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली को सरल बनाया गया। विश्व बैंक की “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” रैंकिंग 142 से सुधरकर 2019 में 63 हुई। |
विनिर्माण क्षेत्र में निवेश बढ़ा, वैश्विक कंपनियों के लिए आकर्षण बढ़ा।
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रोजगार और वेतन वृद्धि | इलेक्ट्रिक व्हीकल, सोलर पैनल और हाई-वैल्यू उत्पादों के उत्पादन में बढ़ोतरी। |
रोजगार के अवसर बढ़े, वेतन में वृद्धि, घरेलू खपत को प्रोत्साहन।
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भारतीय अर्थव्यवस्था की बड़ी चुनौतियां
हालांकि भारत की आर्थिक कहानी प्रभावशाली रही है, लेकिन अभी भी कई जोखिम बने हुए हैं। आइए चुनौतियों के बारे में भी जान लेते हैं:
टैक्सेशन
भारत में टैक्स काफी अधिक है। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) 12.5 फीसदी और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) 20 फीसदी है। वहीं, चीन में ये दोनों ही टैक्स शून्य है। विदेशी निवेशकों की हालिया बिकवाली को भी कैपिटल गेन टैक्स बढ़ाने से ही जोड़कर देखा जा रहा है।
मुद्रास्फीति
भारत के सामने मुद्रास्फीति भी एक बड़ी चुनौती है। आरबीआई महंगाई को काबू में रखने के लिए 5 साल तक ब्याज दरों में कटौती नहीं कर पाया। इसकी वजह से भारत की जीडीपी ग्रोथ भी सुस्त पड़ गई। यह खतरा आगे भी सिर उठा सकता है।
रुपये की कमजोरी
भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है, जिससे आयात लागत बढ़ गई है। रुपये में और भी गिरावट आने का अनुमान है। इससे सरकार के महंगाई और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने की चुनौती पैदा होगी।
ऊर्जा निर्भरता
भारत अपनी जरूरत का 88 फीसदी क्रूड ऑयल आयात करता है। भू-राजनीतिक तनाव की स्थिति में तेल की कीमतों में कोई भी बढ़ोतरी भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है।
मैन्युफैक्चरिंग में पिछड़ापन
सरकार मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रही है, लेकिन अभी उसे उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अभी भी जीडीपी का केवल 13 फीसदी से 17 फीसदी योगदान देता है। यह चीन के 27.6 फीसदी से काफी कम है।
अमेरिकी टैरिफ का खतरा
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। अगर अमेरिका भारत के स्टील, फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाता है, तो भारतीय उद्योगों को तगड़ी चोट पहुंचेगी। भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता घट सकती है और नौकरियों पर असर पड़ सकता है।
एक्सपर्ट का मानना है कि भारतीय बाजार में अभी कुछ गिरावट और सकती है। लेकिन, लॉन्ग टर्म के लिहाज से भारत की आर्थिक कहानी अभी भी मजबूत बनी हुई है। ऐसे में मौजूदा गिरावट लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स के लिए भारतीय बाजार में निवेश करने का एक अच्छा अवसर हो सकती है।
सोर्स:
- BSE India – www.bseindia.com
- NSE India – www.nseindia.com
- Ministry of Finance, Government of India – www.finmin.nic.in
- Reserve Bank of India (RBI) – www.rbi.org.in
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