India-China Relations: भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है चीन, पीएम मोदी को क्या करना चाहिए?

India-China Relations 2025: चीन एक बार फिर भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है। वहां के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत के साथ बेहतर संबंधों की जरूरत पर जोर दिया है। लेकिन, वो कहते हैं न कि दूध का जला, छाछ को भी फूंक-फूंककर पीता है। क्या यह वास्तव में एक नई शुरुआत होगी, या इतिहास खुद को दोहराएगा? भारत और चीन के संबंध दशकों से जटिल रहे हैं।

1950 के दशक में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अगुआई में भारत ने चीन के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। उन्होंने चीन को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता दिलाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन, आखिर में चीन ने दगा किया और भारत पर 1962 में हमला कर दिया। उसके बाद से दोनों देशों के रिश्ते कभी सामान्य नहीं हो पाए। आइए जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर की काट के लिए क्या भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चीन की दोस्ती मंजूरी करनी चाहिए। और क्या चीन पर दोबारा भरोसा करना सही होगा?

‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ से युद्ध तक कैसे पहुंची बात?

भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू को आजादी के बाद से ही लगता था कि भारत और चीन काफी अच्छे दोस्त हो सकते हैं। खासकर, दोनों देशों के बीच भौगोलिक, सांस्कृतिक और धार्मिक समानताएं देखते हुए। 1950 के दशक में नेहरू की अगुआई में भारत ने चीन को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। नेहरू और माओत्से तुंग के बीच शुरू में सौहार्दपूर्ण संबंध दिखे। लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं चला। आइए जानते हैं कि भारत और चीन के रिश्ते कैसे खराब हुए:

  • तिब्बत विवाद (1950-1959): चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। 1959 में जब दलाई लामा ने भारत में शरण ली, तो चीन ने इसे भारत की ‘हस्तक्षेप नीति’ के रूप में देखा।
  • सीमा विवाद (1950 के अंत से): भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर कई बार तनाव बढ़ा। चीन ने अक्साई चिन पर अपना दावा किया, जबकि भारत इसे अपना क्षेत्र मानता था।
  • 1962 का युद्ध: 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर हमला कर दिया। वह अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा भी बताने लगा। इससे दोनों देशों के रिश्तों में गहरा अविश्वास पैदा हो गया। यह आज तक दूर नहीं हो पाया।

Nehru Mao

भारत-चीन के रिश्ते में अब तनाव क्यों है?

1962 के बाद से भारत और चीन के बीच रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आए। दोनों देशों ने 1988 में राजीव गांधी की चीन यात्रा के दौरान रिश्तों को सामान्य बनाने की कोशिश की। हालांकि, भरोसे की जो डोर टूट चुकी थी, वो दोबारा पूरी तरह जुड़ नहीं पाई। पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के बीच कई कारणों से तनाव बढ़ा है:

  • गलवान संघर्ष (2020): जून 2020 में लद्दाख के गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई। इसमें कई चीनी सैनिक मारे और भारत के भी 20 जवान शहीद हो गए। यह भारत-चीन संबंधों के लिए एक और बड़ा झटका था।
  • डोकलाम विवाद (2017): भूटान-चीन सीमा पर चीन सड़क बनाने की कोशिश कर रहा था। भारत ने इसे चीन की दखल नीति बताते हुए निर्माण के प्रयासों को रोक दिया। इससे दोनों देशों की सेनाओं के बीच महीनों तक तनाव रहा।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का महत्वाकांक्षी वैश्विक बुनियादी ढांचा प्रोजेक्ट है। लेकिन, यह भारत को असहज करता है, क्योंकि इसका एक हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है।
  • भारत-प्रशांत रणनीति और अमेरिका की भूमिका: भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ ‘क्वाड’ समूह में भागीदारी बढ़ाई है, जिससे चीन को लगता है कि भारत उसके खिलाफ अमेरिकी रणनीति का हिस्सा बन रहा है।

अब भारत-चीन को साथ आने की जरूरत क्यों है?

हालांकि दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हैं, लेकिन मौजूदा वैश्विक हालात सहयोग की मांग करती हैं। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे टैरिफ वॉर ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर दिया है। अमेरिका लगातार चीन से आयात होने वाले कई उत्पादों पर भारी टैरिफ लगा रहा है। इससे चीन को नए व्यापारिक साझेदारों की जरूरत है। भारत के लिए यह एक अवसर हो सकता है।

चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2023-24 में भारत-चीन व्यापार 136 अरब डॉलर तक पहुंच गया, हालांकि यह भारत के पक्ष में नहीं है। भारत को अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए इस व्यापार को संतुलित करने पर जोर देना होगा। भारत और चीन ब्रिक्स, SCO (शंघाई सहयोग संगठन) और G20 जैसे मंचों पर भी सहयोग कर सकते हैं, ताकि वैश्विक मुद्दों पर साझा रणनीति बनाई जा सके। दोनों देशों की ऊर्जा जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं। अक्षय ऊर्जा और तकनीकी क्षेत्र में साथ काम करने से दोनों को फायदा हो सकता है।

India China Trade

India China Trade: किन चीजों का होता है आयात और निर्यात

भारत चीन से सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और दवाओं के कच्चे माल का आयात करता है। वहीं, भारत चीन को कच्चा लोहा, इस्पात, ऑर्गेनिक केमिकल्स, कृषि उत्पाद और टेक्सटाइल का निर्यात करता है। अगर व्यापार घाटे की मुख्य वजह की बात करें, तो यह हाई-टेक प्रोडक्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स के बड़े आयात के कारण है।

कैटेगरी भारत का चीन से आयात (Imports from China)
भारत का चीन को निर्यात (Exports to China)
इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी मोबाइल फोन, लैपटॉप, टेलीविजन, चिपसेट, सोलर पैनल, टेलीकॉम उपकरण
इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स, हार्ड डिस्क ड्राइव
रसायन और दवाइयां API (Active Pharmaceutical Ingredients), कैमिकल्स, फर्टिलाइजर
दवाइयां, ऑर्गेनिक केमिकल्स
वाहन और ऑटो पार्ट्स ऑटोमोबाइल कंपोनेंट्स, इलेक्ट्रिक व्हीकल बैटरियां
टायर, ऑटोमोबाइल इंजन कंपोनेंट्स
इंजीनियरिंग और मशीनरी भारी मशीनरी, निर्माण उपकरण, रेलवे इंजन पार्ट्स
लोहे और इस्पात से जुड़े उत्पाद
प्लास्टिक और टेक्सटाइल प्लास्टिक कच्चा माल, सिंथेटिक फाइबर, टेक्सटाइल मशीनरी
कॉटन यार्न, सिल्क और टेक्सटाइल उत्पाद
खनिज और धातु स्टील, एल्यूमिनियम, कॉपर उत्पाद
आयरन ओर, बॉक्साइट, मैगनीज
खाद्य और कृषि उत्पाद प्रोसेस्ड फूड, पैक्ड फूड, सीफूड
चाय, मसाले, तिलहन, अनाज, समुद्री उत्पाद
अन्य उत्पाद खिलौने, फर्नीचर, स्टेशनरी, मेडिकल उपकरण
चमड़ा उत्पाद, कास्टिक सोडा, पेट्रोकेमिकल्स

सोर्स: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (भारत सरकार), चाइना कस्टम डेटा

भारत और चीन के रिश्ते सुधारने पर एक्सपर्ट की राय क्या है?

वैश्विक राजनीति के जानकारों का मानना है कि भारत और चीन को एक साथ चाहिए, तभी वे डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका की दादागीरी का मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं। आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) का कहना है कि कि भारत को अमेरिका के साथ सभी व्यापार वार्ताओं से हट जाना चाहिए और ट्रंप प्रशासन के साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए, जैसा चीन और कनाडा कर रहे हैं। GTRI के फाउंडर अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, अमेरिका भारत पर भारी दबाव डाल रहा है ताकि वह ऐसे व्यापारिक समझौते स्वीकार करे, जो पूरी तरह से अमेरिका के हित में हो। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके अधिकारी गलत आंकड़ों का इस्तेमाल कर भारत की आलोचना कर रहे हैं।

ट्रंप ने चीन के उत्पादों पर पिछले दिनों 20 फीसदी टैरिफ बढ़ाने का एलान किया। चीन ने भी ट्रंप को मुंहतोड़ जवाब देते हुए अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा। एक्सपर्ट का मानना है कि अगर भारत और चीन एक साथ आ जाते हैं, तो वे ट्रंप की दादागीरी का और बेहतर तरीके से मुकाबला कर सकते हैं।

Modi Xi

क्या भारत को चीन की दोस्ती स्वीकार करनी चाहिए?

भारत को चीन की ओर से आए किसी भी प्रस्ताव को सावधानी से परखने की जरूरत है। जब तक चीन सीमा विवाद का स्थायी हल नहीं निकालता और अपनी आक्रामक सैन्य गतिविधियों को कम नहीं करता, तब तक भारत को सतर्क रहना चाहिए। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने स्पष्ट कर सकते हैं कि जब तक चीन सीमा पर शांति कायम नहीं करता, तब तक रिश्तों में सुधार संभव नहीं है। भारत को व्यापार घाटे को कम करने के लिए चीन से आयात पर निर्भरता घटानी चाहिए। साथ ही, इस बात पर जोर देना चाहिए कि भारत से चीन अधिक समान खरीदे।

हालांकि, भारत और चीन की दोस्ती से जापान और दक्षिण कोरिया जैसे असहज हो सकते हैं। जापान और दक्षिण कोरिया दोनों ही चीन की विस्तारवादी नीतियों को लेकर चिंतित हैं। दक्षिण चीन सागर, ताइवान, और पूर्वी चीन सागर में चीन की गतिविधियां इन देशों के लिए सुरक्षा चिंता बनी हुई हैं। ऐसे में भारत को चीन की दोस्ती का प्रस्ताव कबूल करने से पहले जापान और दक्षिण कोरिया जैसे सहयोगी देशों को भी भरोसे में लेना होगा।

चीन के साथ भारत का पिछले 5 साल का व्यापार घाटा

वित्त वर्ष भारत का निर्यात भारत का आयात व्यापार घाटा
2019-20 16.7 अरब डॉलर 65.3 अरब डॉलर -48.6 अरब डॉलर
2020-21 21.2 अरब डॉलर 65.2 अरब डॉलर -44 अरब डॉलर
2021-22 21.3 अरब डॉलर 94.6 अरब डॉलर -73.3 अरब डॉलर
2022-23 15.3 अरब डॉलर 98.5 अरब डॉलर -83.2 अरब डॉलर
2023-24 15.3 अरब डॉलर 103.1 अरब डॉलर -87.8 अरब डॉलर

सोर्स: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार

भारत-चीन के रिश्ते में कितना सुधार हुआ है?

कुल मिलाकर, भारत और चीन के बीच रिश्ते लंबे समय से जटिल रहे हैं। लेकिन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के विकास और वैश्विक स्थिरता के लिए सहयोग जरूरी है। भारत और चीन के रिश्ते में सुधार भी हो रहा है। दोनों देशों ने पिछले साल यानी 2024 बातचीत के बाद एक समझौते के तहत पूर्वी लद्दाख के अंतिम दो टकराव बिंदुओं, देपसांग और डेमचोक से सैनिकों की वापसी सुनिश्चित की। इससे पिछले चार साल से अधिक समय से दोनों देशों के बीच चल रहा तनाव बहुत हद तक कम हो गया।

चीन के विदेशी मंत्री वांग यी का कहना है कि पिछले साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच रूस के कजान में सफल बैठक हुई थी। इसके बाद पिछले वर्ष चीन-भारत संबंधों में काफी सकारात्मक प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि पिछले साल पूर्वी लद्दाख में चार साल से अधिक समय से चल रहे सैन्य गतिरोध को खत्कम रने में मिली सफलता के बाद सभी स्तरों पर उत्साहजनक नतीजे मिले हैं।

हालांकि, चीन कुछ भी कहे, भारत को अपने हितों से समझौता नहीं करना चाहिए। भारत को साफ करना चाहिए कि चीन अगर वास्तव में दोस्ती चाहता है, तो उसे भरोसा बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। सीमा पर शांति बनाए रखना उनमें से पहला कदम होगा। इस नए दौर में, भारत को कूटनीतिक सूझबूझ और सतर्कता के साथ आगे बढ़ना होगा, ताकि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए सही वैश्विक संतुलन बना सके।

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Piyush Kumar
Piyush Kumar

पीयूष कुमार एक अनुभवी बिजनेस जर्नलिस्ट हैं, जिन्होंने Banaras Hindu University (BHU)
से शिक्षा ली है। वे कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। वित्त, शेयर बाजार और निवेश रणनीतियों पर उनकी गहरी पकड़ है। उनकी रिसर्च-बेस्ड लेखनी जटिल फाइनेंशियल विषयों को सरल और प्रभावी रूप में प्रस्तुत करती है। पीयूष को फिल्में देखने और क्रिकेट खेलने का शौक है।

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