
Akbar Ram Sita coins: अकबर के शाही सिक्के पर भगवान राम क्यों छपे थे?
Akbar Ram Sita coins: क्या एक इस्लामी सम्राट के सिक्कों पर हिंदू देवी-देवताओं का नाम छापा जा सकता है? इस सवाल का जवाब इतिहास हां में देता है। और यह हुआ था 16वीं सदी के भारत में। मुगल सम्राट अकबर ने अपने शासनकाल (1556–1605) में ऐसे सिक्के जारी किए जिन पर ‘राम’ और ‘सीता’ के नाम अंकित थे। इसमें भगवान राम अपने धनुष-बाण के साथ अंकित थे। उनके साथ माता सीता की छवि भी उकेरी गई थी। और नीचे लिखा था- ‘राम सिया’।
यह साल 1604 की बात है। वो अकबर के शासन का 50वां साल था। मुगल सल्तनत अपने शिखर पर थी। ऐसे में शाही सिक्कों पर किसी हिंदू आराध्य का चित्रण काफी साहस की बात थी। क्योंकि मुगलों के शासनकाल में कट्टरपंथी इस्लामिक गुरुओं का सियासी फैसले में काफी दखल रहता था। साथ ही, इस्लाम में मूर्तिपूजा की भी सख्ती से मनाही है।
क्यों जारी किए गए ये सिक्के?
अकबर ने 1582 में ‘दीन-ए-इलाही’ की स्थापना की थी। एक ऐसा मत, जिसमें सभी धर्मों के विचारों को शामिल किया गया। उसका मकसद था कि लोग धर्म के नाम पर बंटने की बजाय एक समान मूल्यों को अपनाएं। यही सोच इलाहाबाद (Ilahabad) नाम में भी झलकती है, जिसे बाद में अंग्रेजों ने बदल दिया।
इतिहासकारों का मानना है कि इन सिक्कों को जारी करने के पीछे अकबर के वित्त मंत्री राजा टोडरमल की भूमिका हो सकती है, जो हिंदू समाज में गहरी पैठ रखते थे। वह अकबर के शाही खजाने के प्रमुख थे। इतिहासकारों के मुताबिक, कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं:
- अकबर जानता था कि उसका शासन केवल तलवार से नहीं चल सकता। बहुसंख्यक हिंदू जनसंख्या के साथ तालमेल बनाना उसके शासन की स्थिरता के लिए जरूरी था। भगवान राम, एक सांस्कृतिक आदर्श के रूप में, सबसे सशक्त प्रतीक थे।
- दीन-ए-इलाही केवल धार्मिक प्रयोग नहीं था, बल्कि एक दर्शन था, जो यह कहता था कि सत्य किसी एक ग्रंथ या समुदाय की बपौती नहीं है। राम-सिया सिक्के उसी दर्शन का सार्वजनिक प्रतीक बने।
- सिक्के शासकीय सत्ता के सबसे प्रभावशाली प्रतीकों में से एक होते हैं। उनमें किसी विशेष नाम या प्रतीक का अंकन, शासन की नीति और दृष्टिकोण का इशारा करता है। यह निर्णय न सिर्फ प्रशासनिक, बल्कि वैचारिक साहस का भी प्रतीक था।
Akbar Ram Sita coins: कितने सिक्के बने थे?
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के अनुसार, ये सिक्के बड़ी संख्या में नहीं ढाले गए थे। आज केवल तीन ही तरह सिक्के ज्ञात हैं- एक सोने का और दो चांदी के। सार्वजनिक रूप से सिर्फ चांदी का सिक्का देखा गया है, जो इंग्लैंड के क्लासिकल न्यूमिसमेटिक ग्रुप में है।
हालांकि, शाही सिक्कों पर हिंदू दैवीय प्रतीकों का चित्रण बस अकबर के शासनकाल तक ही सीमित रहा। अकबर का उत्तराधिकारी जहांगीर धार्मिक मामलों में अपने पिता जितना उदार नहीं था। साथ ही, शाही सिक्कों पर हिंदू देवता की तस्वीर होने से मुस्लिम धर्मगुरु भी काफी नाराज थे। लिहाजा, अकबर के इंतकाल (1605) के बाद राम और सीता की तस्वीर वाले सिक्कों की ढलाई बंद हो गई।
धर्म से ऊपर राजनीति या सियासी चाल?
अकबर के ये सिक्के यह सवाल भी खड़ा करते हैं कि इसका मकसद क्या था। क्या यह कदम धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल था, या फिर कोई सियासी चाल। इस पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कुछ कहते हैं कि यह अकबर की धर्मनिरपेक्ष सोच का प्रमाण था, जबकि कुछ इसे हिंदू बहुल क्षेत्रों में उसकी पकड़ मजबूत करने की एक रणनीति मानते हैं। हालांकि, इतिहास में बहुत कम ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जब किसी सम्राट ने अपने सिक्कों पर किसी दूसरे धर्म के आराध्य को स्थान दिया हो।
FAQs:
1. अकबर ने राम-सीता वाले सिक्के कब जारी किए थे?
1604 में, अपने शासन के 50वें वर्ष में।
2. इन सिक्कों पर क्या चित्रित था?
भगवान राम धनुष-बाण के साथ और माता सीता की छवि, नीचे “राम सिया” लिखा था।
3. क्या ये सिक्के आम इस्तेमाल में थे?
नहीं, इनकी संख्या सीमित थी और अब केवल कुछ ही उपलब्ध हैं।
4. इसका मकसद क्या था?
धार्मिक सहिष्णुता और हिंदू बहुल समाज से जुड़ाव दिखाना।
5. क्या अकबर के बाद ये सिक्के चलते रहे?
नहीं, जहांगीर के समय ये सिक्के बंद कर दिए गए।
सोर्स:
- Stan Goron & J.P. Goenka: The Coins of the Mughal Emperors
- Edward Maclagan: Akbar and the Jesuits
- Coins of Indian Museum, Calcutta (Vol II)
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