
Aurangzeb Tomb History: औरंगजेब ने अपनी कब्र के लिए औरंगाबाद को ही क्यों चुना था?
औरंगाबाद से क्या था औरंगज़ेब का जुड़ाव?
शाहजहां ने अपनी बादशाहत के दौरान सन 1636 में तीसरे बेटे औरंगज़ेब को सूबेदार बनाकर दौलताबाद भेजा था। औरगंज़ेब को लेकिन दौलताबाद रास नहीं आया और कुछ समय के बाद उसने अपना केंद्र बना लिया औरंगाबाद को। वह यहीं से शासन करने लगा।
इतिहासकारों के मुताबिक, औरंगज़ेब को औरंगाबाद ख़ासा पसंद आया। यहीं से उसने पूरा दक्कन घूमा। यहां उसने काफी निर्माण भी कराए। एक तरह से कहें तो औरंगज़ेब को ख्याति औरंगाबाद से ही मिलनी शुरू हुई। यही वक़्त था, जब भविष्य के बादशाह को अपने रूहानी गुरु की शिक्षाओं का भी साथ मिला। औरंगाबाद में रहने के दौरान वह ऐसे लोगों की सोहबत में आया, जिनसे उसे जैनुद्दीन शिराजी के बारे में जानने को मिला।
किस सूफी संत में थी औरंगज़ेब की आस्था?
चिश्ती परंपरा के प्रवर्तक सैयद जैनुद्दीन दाऊद शिराजी की शिक्षाएं उसे पसंद आईं। उसने शिराजी को अपना गुरु मान लिया।
शिराजी का जन्म हुआ था ईरान के शिराज शहर में। वह मक्का से होते हुए दिल्ली पहुंचे थे। वहां मौलाना कमालुद्दीन से शिक्षा लेकर उनके साथ ही चले आए थे दौलताबाद। सन 1336 में उन्हें दौलताबाद का काजी बना दिया गया। मोहम्मद बिन तुगलक ने एक वक़्त शिराजी को दौलताबाद से दिल्ली जाने का फरमान सुना दिया था। वह चले भी गए, लेकिन उनका दिल दिल्ली में लगा नहीं।
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय की पूर्व प्रफेसर और कला इतिहासकार डॉ. दुलारी कुरैशी ने औरंगज़ेब पर काफी लिखा-पढ़ा है। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है, ‘औरंगज़ेब सूफी संत ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन शिराजी को अपना गुरु या पीर मानता था। इसी वजह से उसने अपने बेटों से कहा था कि उसे उनकी क़ब्र के पास ही दफनाया जाए। दूसरे मुग़ल बादशाहों के विपरीत औरंगज़ेब का मक़बरा बेहद सादा बनवाया गया। ठीक उसी तरह, जैसा उसने अपनी वसीयत में ज़िक्र किया था।’
अपने आखिरी समय में दक्कन क्यों लौटा औरंगज़ेब?
1658 में औरंगजेब बादशाह बना। वह दिल्ली से ही सल्तनत चला रहा था, लेकिन उम्र की ढलान पर किस्मत उसे फिर वहीं ले आई, जहां से उसने अपना सियासी सफर शुरू किया था। सन 1681 में औरंगज़ेब फिर दक्कन लौट आया। अहमदनगर के क़िले को अपना ठिकाना बनाया उसने। सन 1707 में वह बेहद कमजोर हो चुका था। तमाम बीमारियों ने उसकी ताकत पूरी तरह ख़त्म कर दी थी। उसकी हालत ऐसी हो चली थी कि उसे अपने शरीर पर बस खाल ही महसूस होती। जो हाथ कभी अपने भाई का क़त्ल करते हुए नहीं कांपे, उनकी अंगुलियां अब अंगूठियों का बोझ भी नहीं सह पा रही थीं।
अपने भाइयों का क़त्ल करके सत्ता के तख्त तक पहुंचे औरंगज़ेब की चिंता यही थी कि उसके बेटे इस तरह खून ना बहाएं। इसलिए उसने अपनी वसीयत (Aurangzeb Will) में बेटों के बीच उनकी रियासतों का बंटवारा कर दिया था।
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औरंगज़ेब ने अपने मकबरे पर कितना खर्च करने को कहा था?
अहमदनगर के क़िले में मौत के बाद औरंगज़ेब के शरीर को खुल्दाबाद लाया गया और उसे शिराजी की मजार के पास ही दफना दिया गया। जिस दरवाजे से खुल्दाबाद में दाखिल हुआ जाता है, उसे नगरखाना कहते हैं। शहर में प्रवेश करते ही दाईं तरफ औरंगज़ेब का मक़बरा है। फिलहाल यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई की देखरेख में है। औरगंज़ेब की क़ब्र में भीतर दाखिल होने के पहले जूते-चप्पल उतारने होते हैं। यहां गाइड का काम करने वाले एक परिवार को ही इस मक़बरे की देखभाल की जिम्मेदारी दी गई है। कई पीढ़ियों से यह सिलसिला बरकरार है।
औरंगज़ेब ने अपनी वसीयत में कहा था कि उसके मक़बरे पर उतनी ही रकम खर्च की जाए, जो उसने कमाई है। वह टोपियां सिलकर और कुरान की प्रतियां लिखकर यह कमाई किया करता था। उसने यह हिदायत भी दी थी कि उसके मक़बरे पर चार रुपये दो आना ही इस्तेमाल किया जाए। यह रकम उसने अपने महलदार के पास रखवा रखी थी।
औरंगज़ेब ने अपने बेटों से महलदार से यह रकम लेने को कहा था। इसके अलावा कुरान की प्रतियां लिखकर उसने तीन सौ पांच रुपये कमाए थे, जिसे उसने अपने बटुए में रखा था। वसीयत में औरंगज़ेब ने बेटों से कहा था कि इस रकम का इस्तेमाल उसकी मौत के रोज ग़रीबों में बांटने के लिए किया जाए। महज चार रुपये और दो आने की क़ीमत से बना औरंगज़ेब का मक़बरा बिना छत का है। मक़बरे के पास एक पत्थर लगा है, जिस पर औरंगज़ेब का पूरा नाम लिखा है, अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगज़ेब आलमगीर।
Aurangzeb आखिरी समय में खुद को गुनहगार क्यों मान रहा था?
पत्थर पर हिजरी कैलेंडर के हिसाब से औरंगज़ेब के जन्म और मृत्यु की तारीख लिखी है। इसे रोमन कैलेंडर के हिसाब से समझा जाए तो उसका जन्म साल 1618 में हुआ था और निधन 1707 में।
लॉर्ड कर्जन को औरंगज़ेब की कब्र देखकर हैरानी क्यों हुई?
साल 1904-05 के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की ओर से भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल रहे लॉर्ड कर्जन जब इस मुग़ल बादशाह का मक़बरा देखने गए तो इसकी सादगी और मामूलीपन देखकर आश्चर्यचकित रह गए। कर्जन के ही आदेश पर इस मक़बरे के आसपास संगमरमर का काम कराया गया। ग्रिल लगवाई गई और सजावट हुई। औरंगाबाद में ही औरंगज़ेब ने अपनी पत्नी के लिए बीवी का मक़बरा बनवाया था, जिसे दक्कन का ताज भी कहा जाता है। औरंगज़ेब ने अपने जीवन के 87 साल में से 36-37 साल औरंगाबाद में ही बिताए।
वसीयत में अपने दफनाए जाने को लेकर विस्तार से लिखने के अलावा औरंगज़ेब ने अपने बेटों को राजशाही के वे गुर भी बताए थे, जोकि वह ख़ुद अमल में नहीं ला सका था। उसने कहा, ‘एक राजा को हमेशा ही सभी जानकारियों से दुरुस्त होना चाहिए। उसके पास ऐसा तंत्र होना चाहिए कि वह छोटी से छोटी बात जान सके। यह सुनिश्चित कर सके कि उसके पास जो जानकारी आ रही है, वह सही भी है या नहीं? छोटी-सी चूक के बड़े परिणाम भुगतने पड़ते हैं। शिवाजी कैद से केवल मेरी लापरवाही की वजह से भाग निकला। इसके बाद मराठाओं को लेकर मुझे जीवन के अंत तक काफी प्रयास करने पड़े।’
दरअसल, औरंगज़ेब की यह सीख इसलिए भी अहम थी, क्योंकि वह मराठाओं की वजह से ही दोबारा लौटकर अहमदनगर आया था, जहां से वह वापस नहीं जा सका। अंत मे औरंगज़ेब ने अपने बेटों के लिए लिखा कि अगर वे उसकी बातों को समझ सकें तो बेहतर होगा अन्यथा वह दुख जताने के अलावा और कर ही क्या सकता है। भले ही औरंगज़ेब अपने आखिरी वक़्त में चाहता था कि उसके ना रहने पर उसके बेटे सत्ता के लिए ना लड़ें, लेकिन उसकी यह इच्छा अधूरी ही रही। बेटों में युद्ध हुआ और आखिरकार आजम शाह अगला बादशाह बना।
औरंगजेब से जुड़े कुछ सवालों के जवाब (FAQ)
- औरंगज़ेब ने कितने साल तक मुग़ल सल्तनत की कमान संभाली?
जवाब : औरंगज़ेब ने 49 साल तक राज किया। मुग़ल बादशाहों में सबसे लंबा कार्यकाल उसका ही रहा। - औरंगज़ेब ने अपने किस भाई का क़त्ल करवाया था?
जवाब : सत्ता के लिए शाहजहां के चारो बेटों में युद्ध हुए। दारा शिकोह बड़ा बेटा होने के नाते सत्ता पर अपना अधिकार चाहता था, जबकि औरंगज़ेब अपना दावा ठोक रहा था। दारा शिकोह को देवराई के निर्णायक युद्ध में हराकर कैद कर लिया गया था। कैद में ही उसकी निमर्मता से हत्या करवा दी गई। - औरंगज़ेब को किन उपनामों से पुकारा जाता था?
जवाब : औरंगज़ेब को अपने सादे जीवन की वजह से ज़िंदा पीर और दरवेश जैसे उपनाम मिले थे। - किन लोगों की तैनाती औरंगज़ेब ने शरई क़ानून का पालन कराने के लिए की थी?
जवाब : मुहतासिबों की नियुक्ति औरंगज़ेब ने यह सुनिश्चित कराने के लिए की थी कि कोई भी व्यक्ति शरई क़ानूनों का उल्लंघन ना करे। इन्हें सार्वजनिक स्थलों पर शराब पीने आदि की निगरानी भी करनी थी। - कौन-सा टैक्स औरंगज़ेब ने दोबारा शुरू किया था?
जवाब : जजिया कर औरंगज़ेब के ही शासनकाल में दोबारा अमल में लाया गया। इसके पहले इसे अकबर ने बंद करा दिया था। यह कर गैर मुस्लिमों से लिया जाता था। - किस भाषा को औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल में बढ़ावा दिया?
जवाब : औरंगज़ेब ने फारसी भाषा को बढ़ावा दिया। भारतीय संगीत पर काफी काम इस भाषा में हुआ। - सवाल : औरंगज़ेब ने कब आतिशबाजी पर रोक लगा दी थी?
जवाब : 1667 में औरंगज़ेब ने आतिशबाजी पर रोक लगा दी थी।
- “Maasir-i-Alamgiri” – मुहम्मद साकी मुस्ताद खान
- “History of Aurangzeb” – सर जदुनाथ सरकार (Jadunath Sarkar)
- “Aurangzeb: The Man and The Myth” – ऑड्रे ट्रशके (Audrey Truschke)
- भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives of India)
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Piyush Kumar
पीयूष कुमार एक अनुभवी बिजनेस जर्नलिस्ट हैं, जिन्होंने Banaras Hindu University (BHU)
से शिक्षा ली है। वे कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। वित्त, शेयर बाजार और निवेश रणनीतियों पर उनकी गहरी पकड़ है। उनकी रिसर्च-बेस्ड लेखनी जटिल फाइनेंशियल विषयों को सरल और प्रभावी रूप में प्रस्तुत करती है। पीयूष को फिल्में देखने और क्रिकेट खेलने का शौक है।