Explainer: मंदी की आशंका से उलझन में शेयर बाजार, पैसा लगाने से पहले किन बातों का रखें ध्यान?

Indian Economy and Share Market Crisis Explainer in Hindi: भारत की अर्थव्यवस्था पिछली कुछ तिमाहियों से हिचकोले खा रही है। इसका सीधा असर शेयर मार्केट पर भी दिख रहा है। किसी दिन बाजार 1 फीसदी चढ़ जाता है, तो अगले दिन इससे अधिक गिर जाता है। हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अपने पहले अग्रिम अनुमान में वित्त वर्ष 2025 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) 6.4 फीसदी रहने की बात कही है।

लेकिन, जीडीपी ग्रोथ का असल आंकड़ा इससे भी नीचे जा सकता है। बजट 2025 (Budget 2025) से कोई बड़ी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। इससे शेयर बाजार में और भी ज्यादा उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। इस लेख में हम मौजूदा आर्थिक मंदी की आशंका और शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव की वजह का एनालिसिस करेंगे। साथ ही, यह समझने की कोशिश करेंगे कि निवेशकों को आने वाले समय में किस तरह की रणनीति अपनानी चाहिए।

भारत की इकोनॉमी और शेयर मार्केट की समस्या क्या है?

इंडियन इकोनॉमी (problem of indian economy) की मुश्किलें चारों तरफ से बढ़ रही हैं। इसका असर शेयर मार्केट पर दिख रहा है। इस चीज को डिटेल में समझते हैं:

आर्थिक मंदी का प्रभाव

भारतीय अर्थव्यवस्था में अब मंदी (indian economy slowdown) अब एक तिमाही की बात नहीं रही। NSO का हालिया अनुमान बताता है कि पूरे वित्त वर्ष के दौरान इकोनॉमी सुस्त बनी रह सकती है। इकोनॉमिक एक्सपर्ट का मानना है कि NSO भले ही जीडीपी ग्रोथ 6.4 फीसदी रहने का अनुमान दे रहा है, लेकिन असल आंकड़े इससे भी कम रह सकते हैं। क्योंकि गाड़ियों की बिक्री से लेकर खपत तक अर्थव्यवस्था के सभी मंदी का संकेत दे रहे हैं।

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बहुत समय से नीतिगत ब्याज दरों (Repo Rate) में कोई कटौती नहीं की है। आरबीआई के लिए हालात अब और भी मुश्किल हो गए हैं। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। अमेरिकी बॉन्ड यील्ड्स भी ऊंची बनी हुई है। इससे ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश न के बराबर रह गई है। इसका भी असर शेयर बाजार पर पड़ेगा, क्योंकि उसे 2025 की शुरुआत से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद थी।

सरकारी खर्च और मांग की कमी

सरकार मौजूदा वित्त वर्ष में अपने खर्च (Government spending)को योजना के मुताबिक नहीं बढ़ा पाई है। पहले लोकसभा चुनाव 2024 की वजह से इसमें रुकावट आई। इसके बाद केंद्र में गठबंधन की सरकार बनी। बीजेपी को अपने गठबंधन सहयोगियों को खुश करने के लिए बजट का एक हिस्सा बिहार और आंध्र प्रदेश को देना पड़ा। फिर सरकार ने राजकोषीय घाटा कम करने के लिए भी अपने खर्चों पर अंकुश लगाया। इससे घरेलू मांग नहीं बढ़ी और शेयर बाजार में भी सुस्ती बनी रही।

शेयर बाजार में कैश फ्लो का हाल

भारतीय शेयर बाजार में फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (FII) पिछले कई महीनों से रिकॉर्ड तोड़ बिकवाली कर रहे हैं। खासकर, फाइनेंशियल और ऑयल-गैस सेगमेंट। यह बिकवाली उनके निवेश का काफी छोटा हिस्सा है। लेकिन, इसका ओवरऑल मार्केट सेंटिमेंट पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। हालांकि, घरेलू निवेशक भारी खरीदारी करके विदेशी निवेशकों की बिकवाली की धार को कुंद करने में लगे हुए हैं।

शेयर बाजार में किस वजह से उतार-चढ़ाव हो रहा है?

पिछले कई महीनों से शेयर मार्केट में काफी बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। आइए इसकी वजह को समझते हैं।

मार्केट कैप और जीडीपी अनुपात

दुनिया के सबसे मशहूर निवेश वॉरेन बफे (Warren Buffet) ने किसी देश के शेयर मार्केट को वैल्यूएशन आंकने के लिए एक फॉर्मूला दे रखा है। इसे बफे इंडिकेटर (Buffett Indicator) कहते हैं। यह इंडिकेटर मार्केट कैप से जीडीपी की तुलना करके वैल्यूएशन निकालता है। वॉरेन बफे इंडिकेटर बताता है कि भारत का मार्केट कैप और जीडीपी रेशियो काफी अधिक है। अगर आर्थिक वृद्धि तेज नहीं होती है, तो यह अनुपात ऊंचा बना रह सकता है। इससे बाजार में अनिश्चितता बढ़ सकती है।

बाजार में गिरावट की स्थिति

स्टॉक मार्केट में गिरावट काफी तेज हो सकती है। ऐसा ही माहौल 1990 के दशक में या 2008-2013 के दौरान भी दिखा था। उस समय बाजार कई साल मंदा ही रहा था। फिलहाल ऐसी स्थिति की आंशका काफी कम है। फिर भी इसे ध्यान में रखते हुए निवेशकों को लंबी अवधि के निवेश पर फोकस करना चाहिए।

कंपनियों के वित्तीय नतीजों पर नजर

कंपनियां वित्त वर्ष 2024-25 की दिसंबर तिमाही के लिए नतीजे जारी करना शुरू कर चुकी हैं। अगर पिछली तिमाहियों की तरह इस बार भी ज्यादातर कंपनियों के वित्तीय नतीजे खराब रहते हैं, तो शेयर मार्केट में गिरावट का संकट और भी ज्यादा गहरा हो सकता है। हालांकि, अगर नतीजे अच्छे रहते हैं, तो बाजार तेजी से बाउंसबैक भी कर सकता है और निवेशकों को तगड़ा मुनाफा मिल सकता है।

सरकारी बजट से राहत की उम्मीद कम

भारत की इकोनॉमी एकसाथ कई चुनौतियों से जूझ रही है। सरकार के पास पर्याप्त रिसोर्सेज भी नहीं हैं। ऐसे में इस बात की उम्मीद न के बराबर है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट 2025 में मिडल क्लास को कोई बड़ी राहत देंगी। इस स्थिति में शेयर मार्केट के जल्दी रिकवर होने की उम्मीद भी नहीं रहेगी। क्योंकि मिडल क्लास के हाथ में पैसा न होने से खपत नहीं बढ़ेगी और इसे अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर सुस्त बनी रहेगी।

शेयर बाजार के निवेशकों को क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

मौजूदा उतार-चढ़ाव के बाद निवेशक उलझन में हैं कि उनकी निवेश रणनीति क्या होनी चाहिए। आइए इस उलझन को भी सुलझाते हैं:

पोर्टफोलियो की समीक्षा करें

इस वक्त सबसे जरूरी चीज है कि आप अपने वित्तीय लक्ष्य (Financial Goals) का नए सिरे से आंकलन करें। जैसे कि आप कितना रिटर्न चाहते हैं, कितने समय में चाहते हैं और आपकी जोखिम लेने की क्षमता कितनी है। इस आधार पर अपनी संपत्ति आवंटन (Asset Allocation) की फिर से समीक्षा करें और पोर्टफोलियो को संतुलित करें।

लंप सम निवेश से बचें

एक्सपर्ट का मानना है कि इस समय निवेशकों क लंप सम इन्वेस्टमेंट यानी एकमुश्त निवेश से बचना चाहिए। हमें नहीं पता कि शेयर मार्केट में नेगेटिव सेंटिमेंट कब तक रहेगा और इसका बॉटम यानी निचला स्तर कहां होगा, जहां से बाजार में दोबारा तेजी का दौर शुरू होगा।

लॉन्ग टर्म के लिए निवेश करें

शेयर बाजार में अगले कुछ महीनों तक उतार-चढ़ाव का दौर बना सकता है। अगर आर्थिक मंदी का संकट गहराता है, तो उसका खौफ स्टॉक मार्केट पर भी दिखेगा। ऐसे में निवेशकों लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट का रुख करना चाहिए। बहुत से ऐसे स्टॉक हैं, जो काफी सस्ते वैल्यूएशन पर उपलब्ध हैं। उन्हें धीरे-धीरे खरीदना चाहिए और हर बड़ी गिरावट के साथ निवेश बढ़ाना चाहिए।

बाजार के उतार-चढ़ाव से डरें नहीं

अगर आप स्टॉक मार्केट इन्वेस्टर हैं, तो आपको हमेशा मानसिक रूप से मंदी वाले दौर के लिए तैयार रहना चाहिए। यह दौर कुछ महीनों से लेकर साल तक भी बना सकता है। इस दौरान मार्केट में 20 फीसदी तक का भी करेक्शन हो सकता है। हालांकि, हर गिरावट के बाद तेजी का दौर आता है। कोरोना काल में मार्केट क्रैश होने के बाद चार साल का बुल रन इसका गवाह है।

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Piyush Kumar
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