What is GMP: ग्रे मार्केट में कैसे होती है ट्रेडिंग, क्या होता है जीएमपी; जानिए पूरी डिटेल 

What is gmp in ipo: किसी भी बड़ी कंपनी का आईपीओ (Initial public offering) आने के साथ एक चीज बड़ी चर्चा में रहती है, वो है ग्रे मार्केट (Grey Market) और ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP)। बजाज हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (Bajaj Housing Finance Limited), KRN हीट एक्सचेंजर और वारी एनर्जी (Waree Energies) के आईपीओ के वक्त अधिकतर निवेशकों ने जीएमपी देखकर निवेश किया और उन्हें तगड़ा मुनाफा भी हुआ। मोबिक्विक आईपीओ (Mobikwik IPO GMP) और विशाल मेगा मार्ट आईपीओ (Vishal Mega Mart IPO GMP) का जीएमपी देखकर लोग सब्सक्राइब कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) क्या है और इसके हिसाब से लोग आईपीओ में पैसा क्यों लगाते हैं।

Grey Market Premium (GMP) क्या है

ग्रे मार्केट एक ऐसा बाजार है, जहां आईपीओ लाने वाली कंपनी की शेयरों की खरीद और बिक्री होती है। आईपीओ के इश्यू प्राइस पर जो भी भाव मिलता है, उसे Grey Market Premium यानी GMP कहते हैं। अब जैसे कि किसी शेयर का इश्यू प्राइस 100 रुपये है और उसे लोग 150 रुपये में खरीद रहे हैं, तो जीएमपी 50 रुपये होगा। वहीं, उसके लिए 80 रुपये की बोली लग रही है, तो अनुमान लगाया जाएगा कि शेयर की लिस्टिंग 20 रुपये के डिस्काउंट के साथ हो सकती है।

Grey Market में शेयरों की ट्रेडिंग कैसे होती है?

ग्रे मार्केट में स्टॉक का लेनदेन व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। यह पूरी ट्रेडिंग मार्केट रेगुलेटर सेबी (Market regulator SEBI) के नियमों के बाहर होती है। इसका मतलब है कि अगर ग्रे मार्केट में आपके साथ कोई फ्रॉड होता है, तो वह सेबी की जिम्मेदारी नहीं है। ग्रे मार्केट में कोई सरकारी कानून-कायदा नहीं चलता है। यहां ट्रेडिंग आपसी भरोसे के आधार पर होता है। यही वजह है कि ग्रे मार्केट की ट्रेडिंग में काफी जोखिम रहता है।

ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) कैलकुलेट कैसे की जाती है?

GMP से आमतौर पर आईपीओ में स्टॉक की डिमांड और सप्लाई में उतार-चढ़ाव का पता चलता है। ग्रे मार्केट के जानकारों के मुताबिक, ‘अगर शेयरों के आवंटन (Share Allotment) की संभावना बढ़ती है, तो इसका मतलब है कि अधिक स्टॉक बिक्री के लिए उपलब्ध हैं और GMP गिर जाएगा। वहीं, अगर आवंटन की संभावना कम हो जाती है, तो इसका मतलब है कि कम शेयर उपलब्ध होंगे, और फिर GMP अधिक हो जाएगा।’

ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) आईपीओ सब्सक्रिप्शन के हिसाब से घटता-बढ़ता है। सब्सक्रिप्शन जितना अधिक होगा, जीएमपी भी उतना ही ज्यादा होगा। यह चीज उलटी भी हो सकती है यानी कम सब्सिक्रिप्शन पर जीएमपी भी कम रह सकता है या फिर नेगेटिव में भी जा सकता है। जीएमपी जितना बढ़ता है, उसी हिसाब से सब्सक्रिप्शन बढ़ने की भी उम्मीद होती है, क्योंकि इससे आईपीओ की हाइप बढ़ती है।

ग्रे मार्केट में शेयर कैसे खरीदा और बेचा जाता है?

  • आईपीओ में शेयर खरीदने के लिए ग्रे मार्केट ब्रोकर (Grey Market Brokers) से संपर्क करना होता है। आप उसे बताएंगे कि आप कितने प्रीमियम (GMP) पर स्टॉक खरीदना चाहते हैं। फिर ब्रोकर संभावित विक्रेताओं से संपर्क करेगा। अब कोई शख्स तभी शेयर बेचेगा, जब उसे डर होगा कि स्टॉक पता नहीं किस स्तर पर लिस्ट होगा और वह लिस्टिंग तक इसे रखने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगा।
  • यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ग्रे मार्केट में शेयरों का कोई फिजिकल ट्रांसफर नहीं होता। आईपीओ अलॉटमेंट के बाद जब विक्रेता को शेयर मिल जाते हैं, तो वह वह ब्रोकर के जरिए उसे खरीदार को ट्रांसफर कर देता है। यह सारा काम भरोसे और नकद लेनदेन के माध्यम से होता है।
  • सभी लेन-देन लिस्टिंग प्राइस पर तय किए जाते हैं। अगर लिस्टिंग प्राइस और पहले बताई गई प्राइस में कोई अंतर है, तो उसे भी लिस्टिंग के दिन ही तय किया जाता है। यही कारण है कि कई आईपीओ के लिए लिस्टिंग के दिन सुबह 9:45 बजे वॉल्यूम अधिक होता है। ऐसे ट्रेडों का जोखिम यह है कि वे एक्सचेंजों और सेबी के दायरे में नहीं आते।

ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) कितना सटीक है?

इसमें कोई शक नहीं कि GMP किसी शेयर की सटीक लिस्टिंग प्राइस का प्रतिबिंब नहीं हो सकता। निवेशक बस GMP के रुझानों को देखकर लिस्टिंग के बाद स्टॉक की दिशा का अनुमान लगा सकते हैं। मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि जीएमपी 70 से 80 फीसदी सटीक होता है। स्टॉक आमतौर पर अपने जीएमपी प्राइस के 15 से 20 फीसदी की रेंज में सूचीबद्ध होता है।

हालांकि, किसी कंपनी की लिस्टिंग प्राइस आईपीओ के सब्सक्रिप्शन (IPO Subscription) और एंकर निवेशक जैसे फैक्टर भी निर्भर करती है। इसलिए सिर्फ जीएमपी के आधार पर किसी आईपीओ में निवेश करने से बचना चाहिए।

क्या ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) में हेरफेर किया जा सकता है?

बड़े आईपीओ के मामले में ग्रे मार्केट प्रीमियम में हेरफेर (GMP manipulation) करना मुश्किल है। लेकिन, जीएमपी में हेरफेर की गुंजाइश बराबर रहती है, खासकर छोटे इश्यूज के मामले में। हाल के महीनों में छोटे और मध्यम उद्यमों के आईपीओ (SME IPO) के लिए ग्रे मार्केट में गड़बड़ी की अटकलें लगाई गई थीं।

यही वजह है कि मार्केट रेगुलेटर सेबी ने SME IPO के लिए नियमों को काफी सख्त किया है। उनकी लिस्टिंग अधिकतम 90 फीसदी लिस्टिंग गेन की कैप भी लगाई है। यही वजह है कि एक्सपर्ट की सलाह देते हैं कि निवेशकों को जीएमपी से अधिक ध्यान कंपनी के फंडामेंटल्स पर देना चाहिए।

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Piyush Kumar
Piyush Kumar
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