
Ancient Indian Democracy: यूनान से पहले भारत में था लोकतंत्र? क्या कहता है इतिहास
Ancient Indian Democracy: जब हम लोकतंत्र यानी डेमोक्रेसी की बात करते हैं, तो जेहन में अमेरिका या यूनान (ग्रीस) का नाम आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में लोकतंत्र (ancient Indian democracy) के बीज अमेरिका या यूनान से भी पहले पड़ चुके थे, वो भी करीब 2500 साल पहले? जी हां, हम बात कर रहे हैं लिच्छवि गणराज्य (Licchavi Republic) की, जिसे भारत की पहली डेमोक्रेसी कहा जा सकता है।
लिच्छवि (Licchavis) कौन थे?
लिच्छवि एक प्राचीन जनजाति थी, जिनकी जड़ें इंडो-आर्यन परंपरा (ancient Indo-Aryan tribe) से जुड़ी मानी जाती हैं। इनका केंद्र बिहार के वैशाली क्षेत्र (Licchavis of Vaishali) में था। ये महाजनपद काल (6वीं सदी ईसा पूर्व) का हिस्सा थे। वैशाली उस समय एक समृद्ध नगर था। बुद्ध व महावीर दोनों के जीवन में इसका खास महत्व था।
लिच्छवियों का लोकतंत्र कैसा था?
लिच्छवि शासन किसी एक राजा के अधीन नहीं था, बल्कि यह एक “गणराज्य” (Ancient Indian Democracy) था। इसका मतलब कि कई प्रमुख व्यक्ति (राजाओं का समूह या गण) मिलकर शासन चलाते थे।
- उनके पास एक संस्था थी, सभा या संज्ञा। यहां सैकड़ों गण प्रमुख इकट्ठा होते थे।
- हर निर्णय बहुमत से लिया जाता था, और बहस-मुबाहसे की परंपरा जबरदस्त थी।
- हर साल एक महास्थविर (senior-most Member) चुना जाता था, जो अध्यक्षता करता था।
Licchavis लोकतंत्र की असली पहचान
लिच्छवि शासन में जनता के प्रतिनिधि होते थे। निर्णय प्रक्रिया सामूहिक होती थी। कानून, युद्ध और कर जैसे मसलों पर चर्चा की जाती थी। यानी आज जिस संसद या विधानसभा की बात करते हैं, उसका बीज यहां बहुत पहले बोया जा चुका था। सभा में हर निर्णय बहुमत से तय होता था, और किसी भी मत को बिना चर्चा के खारिज नहीं किया जाता था। यह न केवल शासन प्रणाली थी, बल्कि जन-सहभागिता और नैतिकता पर आधारित एक सामाजिक दर्शन भी था।
क्या ग्रीस से पहले थे लिच्छवि?
जी हां। एथेंस (ग्रीस) में लोकतंत्र की शुरुआत 5वीं सदी ईसा पूर्व मानी जाती है, जबकि लिच्छवि शासन उससे पहले ही अस्तित्व में था। यानी भारत की धरती पर दुनिया की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक परंपराओं में से एक देखी गई थी।
ऐतिहासिक स्रोत क्या कहते हैं?
लिच्छवि गणराज्य की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का उल्लेख कई ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। ‘महापरिनिब्बान सुत्त’ नामक बौद्ध ग्रंथ में विस्तार से बताया गया है कि कैसे लिच्छवियों की सभा और परिषद मिलकर निर्णय लिया करती थी। इस ग्रंथ में बुद्ध ने लिच्छवियों की एकता, नियमबद्धता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रशंसा की है।
इसके अलावा, भारत आए दो प्रसिद्ध चीनी यात्रियों – फाह्यान (Faxian) और ह्वेनसांग (Xuanzang) – ने भी वैशाली और लिच्छवि गणराज्य का वर्णन किया है। फाह्यान ने 5वीं शताब्दी में और ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी। दोनों ने अपनी यात्राओं के वृत्तांतों में वैशाली की गणपरंपरा (Ancient Indian Democracy), बुद्ध के साथ इसके संबंध, और वहां की सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था का जिक्र किया है।
बुद्ध ने लिच्छवि के बारे में क्या कहा?
लिच्छवि गणराज्य महात्मा बुद्ध के समकालीन था। बुद्ध के जीवन में इनका खास योगदान भी था। कुछ अहम ऐतिहासिक बातें:
- गौतम बुद्ध ने वैशाली (जहां लिच्छवि गणराज्य था) में कई बार प्रवास किया था।
- बुद्ध ने वैशाली में महिला संघ (Bhikkhuni Sangha) की स्थापना की थी।
- यहीं पहली बार महिलाओं को संन्यास की अनुमति दी गई थी।
- लिच्छवियों और उनकी सभाओं ने महात्मा बुद्ध के विचारों को काफी सम्मान दिया।
महापरिनिब्बान सुत्त में बुद्ध ने लिच्छवियों की शासन प्रणाली की प्रशंसा की थी। उन्होंने कहा था कि जब तक लिच्छवि संगठित रहेंगे, उनका गणराज्य स्थिर रहेगा। यानी लिच्छवियों की राजनीति सिर्फ प्रशासनिक नहीं, आध्यात्मिक और सामाजिक विमर्श का भी हिस्सा थी।
क्यों जरूरी है इसे जानना?
आज जब लोकतंत्र को ‘पश्चिम की देन’ कहा जाता है, तो लिच्छवि गणराज्य का उदाहरण दिखाता है कि भारतीय सभ्यता में भी समानता, बहस और जन-भागीदारी की परंपरा रही है। यह हमारे इतिहास का गर्व करने लायक हिस्सा है।
लिच्छवि गणराज्य सिर्फ एक प्रशासनिक व्यवस्था नहीं था, बल्कि एक विचार था कि सत्ता एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि जनता की होती है। और शायद, यही लोकतंत्र की असली आत्मा है।
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