Explained: एक देश एक चुनाव से पैसा तो बचेगा, लेकिन क्या ये देश हित में होगा?
One nation one election kya hai in hindi: भारत अब एक देश एक चुनाव (One Nation One Election) की दिशा में आगे बढ़ चुका है। अब तक विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग होते रहे हैं। लेकिन अगर सबकुछ नरेंद्र मोदी सरकार के मुताबिक रहा, तो साल 2029 से केंद्र और राज्यों की सरकारें एक साथ चुनी जाएंगी। इस प्रस्ताव से जुड़ा बिल मंगलवार (17 दिसंबर) (one nation one election bill) को लोकसभा में पेश किया गया। आइए जानते हैं कि एक देश-एक चुनाव क्या (One nation one election Explained in hindi) है। इसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा। इससे देश और लोकतंत्र का फायदा होगा या नुकसान?
वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) क्या है?
जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि एक देश-एक चुनाव का मतलब है कि केंद्र और राज्यों की सरकार चुनने के लिए हर पांच साल में एक ही बार मतदान होगा। आजादी के बाद 1967 तक देश में इसी तरह से चुनाव होता था। लेकिन, कुछ नए राज्य बनें, कुछ सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर गईं और यह चक्र टूट गया। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुआई में एक कमेटी बनाई थी। इसी कमेटी ने एक देश-एक चुनाव की पूरी रूपरेखा तैयार की है।
एक देश एक चुनाव से कितना पैसा बचेगा?
केंद्र सरकार का दावा है कि केंद्र और राज्य का चुनाव एक साथ कराने से देश का काफी पैसा बचेगा। यही वजह है कि पीएम नरेंद्र मोदी लंबे वक्त से एक देश एक चुनाव की वकालत कर रहे हैं।
विधि आयोग का अनुमान
भारत के विधि आयोग का अनुमान है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव से देश को काफी वित्तीय फायदा होगा। इससे कुल मिलाकर 4,500 करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है।
नीति आयोग का अनुमान
सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने अनुमान लगाया है कि एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने को 7,500 करोड़ रुपये से लेकर 12,000 करोड़ रुपये तक का फायदा हो सकता है।
एक देश-एक चुनाव का इकोनॉमी पर क्या असर होगा?
रामनाथ कोविंद कमेटी (Ramnath Kovind Committee) का मानना है कि वन नेशन वन इलेक्शन से भारत की इकोनॉमी को काफी फायदा होगा।
GDP ग्रोथ
कोविंद कमेटी का दावा है कि वन नेशन वन इलेक्शन की शुरुआत के बाद देश की जीडीपी ग्रोथ अगले साल 1.5 फीसदी बढ़ जाएगी। वित्त वर्ष 2023-24 में जीडीपी का 1.5 फीसदी करीब 4.5 लाख करोड़ के बराबर था। भारत अपने पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जितना खर्च करता है, यह रकम उसके आधे के बराबर है।
निवेश
देश में लगातार चुनाव होने से अनिश्चितता का माहौल रहता है। इससे निवेश को लेकर अनिश्चितता भी बढ़ जाती है। रामनाथ कोविंद कमेटी की रिपोर्ट का मानना है कि एक साथ चुनाव होने से निवेश को लेकर सकारात्मक माहौल बनेगा और यह काफी ज्यादा बढ़ जाएगा।
महंगाई
महंगाई के मामले में कोई बड़ा अंतर नहीं आने वाला है। एकसाथ चुनाव हों या फिर अलग-अलग, दोनों ही स्थिति में महंगाई में कमी आती है। फिर भी एक साथ चुनाव होने से महंगाई में अधिक गिरावट आने का अनुमान है। यह अंतर तकरीबन 1.1 फीसदी तक रह सकता है।
राजकोषीय घाटा
एकसाथ चुनाव होने से राजकोषीय घाटा करीब राजकोषीय घाटा 1.28 फीसदी तक बढ़ सकता है। हालांकि, यह एकसाथ चुनाव कराने से जुड़ी तैयारियों पर खर्च की वजह से होगा। एक बार इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार होने पर यह वापस सामान्य हो जाएगा।
एक देश एक चुनाव के फायदे
- चुनाव खर्च में कमी: केंद्र और राज्यों का चुनाव एकसाथ कराने से चुनाव खर्च में कमी आएगी।
- विकास कार्यों में तेजी: एक बार चुनाव के बाद सरकारें लगातार पांच साल विकास कार्य कर सकेंगी।
- राजनीतिक स्थिरता: एक देश एक चुनाव से राजनीतिक स्थिरता बढ़ेगी, जिससे निवेश भी बढ़ेगा।
- संसाधनों की बचत: सरकारी कर्मचारियों को बार-बार लगने वाली चुनावी ड्यूटी से छुटकारा मिलेगा।
- लोकलुभावन वादों पर लगाम: बार-बार चुनाव के कारण लोक लुभावने वादों की प्रतिस्पर्धा भी खत्म होगी।
एक देश एक चुनाव के नुकसान
- वोटिंग के मुद्दे पर असर: एक साथ चुनाव से पूरा मुद्दा राष्ट्रीय हो सकता है, जिसका क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा।
- छोटी पार्टियों पर खतरा: क्षेत्रीय मुद्दों के कमजोर पड़ने से राष्ट्रीय दलों को फायदा होगा। छोटे दलों का वजूद खत्म हो सकता है।
- अधिक संसाधन की जरूरत: एक साथ चुनाव कराने में अधिक संसाधन की जरूरत पड़ेगी। जैसे कि सुरक्षा बल, ईवीएम और वीवीपैट मशीन।
- संघीय ढांचे पर प्रभाव: एक देश-एक चुनाव राज्यों की स्वायत्तता को कम कर सकता है और केंद्र की शक्तियों को बढ़ा सकता है।
- मध्यावधि चुनाव की समस्या: अगर किसी राज्य की सरकार गिर जाती है, तो मध्यावधि चुनाव की समस्या हो सकती है।
लोकतंत्र के लिए खतरा है एक देश एक चुनाव?
विपक्षी पार्टियों का सबसे बड़ा डर यही है कि एकसाथ चुनाव कराना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। रामनाथ कोविंद रिपोर्ट या फिर सरकार भी कोई ठोस भरोसा नहीं दे पाती कि वन नेशन वन इलेक्शन लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं होगा। आइए समझते हैं कि एकसाथ चुनाव कराने से क्या दिक्कत हो सकती है।
तानाशाही बढ़ने का खतरा
एकसाथ चुनाव कराने से तानाशाही बढ़ने की भी आशंका है। अगर किसी पार्टी का केंद्र में पूर्ण बहुमत आ जाता है, तो वह अपने दबदबे का इस्तेमाल करके राज्यों में विपक्षी पार्टियों के विधायकों को तोड़ सकती है। केंद्र सरकार पर हमेशा से सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है। इसलिए इस आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता।
छोटी पार्टियों के खत्म होने का खतरा
विपक्ष की दलील है कि एकसाथ चुनाव होने से क्षेत्रीय दलों का वजूद खतरे में आ जाएगा या वे खत्म हो जाएंगे। क्योंकि जनता राष्ट्रीय मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट करेगी। इससे क्षेत्रीय मुद्दों पर सियासत करने वाले दलों को नुकसान होगा।
दल-बदल (Horse Trading) का डर
एकसाथ चुनाव होने से दल-बदल (Horse Trading) के मामले बढ़ सकते हैं। क्योंकि विधायकों और सांसदों के साथ राजनीतिक दलों को भी यह पता रहेगा कि एक बार सरकार बनने के बाद पांच साल तक उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा।
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