
मृत्यु के बाद क्या होता है? धर्म या विज्ञान, कौन देता है इसका सटीक जवाब?
What happens after death: धरती पर जब से जीवन पनपा है, तभी से उसका सामना एक कड़वी हकीकत से हो गया कि मृत्यु ही आखिरी सत्य है। फिर इंसानी सभ्यता विकसित हुई। हमारे अंदर सोचने समझने की क्षमता आई। और हम जीवन के रहस्यों से जुड़े सवालों का जवाब तलाशने लगे। जैसे कि आत्मा क्या है, मृत्यु क्या है और मृत्यु के बाद क्या होता है। आइए इन सवालों का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
मृत्यु क्या है? (What is death?)
यह सवाल जितना जटिल दिखता है, उससे कहीं ज्यादा उलझा हुआ है। इस बारे में धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं अलग-अलग हैं। महान ब्रिटिश साहित्यकार T.S. Eliot ने लिखा था, “In my end is my beginning” यानी “मेरे अंत में ही मेरी शुरुआत छिपी है।” जिंदगी और मौत का फलसफा कमोबेश कुछ ऐसा ही है।
अगर भगवदगीता की मानें, तो मृत्यु केवल शरीर का नाश है। यह ठीक उसी तरह से है, जैसे कि हम पुराने कपड़े छोड़कर नए कपड़े पहन लेते हैं। वहीं, वैज्ञानिकों का मानना है कि मृत्यु सिर्फ चेतना का खत्म होना है। जैसे कि किसी गैजेट को पावर मिलनी बंद हो जाती है, तो वह ठप पड़ जाती है।
दुनिया की अधिकतर धार्मिक परंपराएं हमें यह भरोसा दिलाती हैं कि मृत्यु के बाद कुछ न कुछ जरूर होता है। वह आपके कर्मों के हिसाब से अच्छा या फिर बुरा हो सकता है। लेकिन, आधुनिक विज्ञान ने मृत्यु के बाद जीवन के किसी भी प्रमाण को नकार दिया है। इसके मुताबिक, हमारे भौतिक शरीर के खत्म होने के साथ ही हमारी आत्मा, स्मृति, व्यक्तित्व, विचार और भावनाएं भी खत्म हो जाती हैं।
धर्म और विज्ञान का जवाब कितना सही है?
जब हम पूछते हैं, “मृत्यु के बाद हम कहां जाते हैं?” तो हमें आमतौर पर दो जवाब मिलते हैं। धर्म का जवाब होता है कि हम अपने कर्मानुसार स्वर्ग या नरक जाते हैं। वहीं, विज्ञाप बताता है कि हमारा अस्तित्व ऊर्जा और परमाणुओं में विलीन हो जाता है। लेकिन ये दोनों ही धारणाएं ऐसे रहस्यों से घिरी हुई हैं, जिनका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
ये दोनों ही जवाब हमें वहीं छोड़ देते हैं, जहां से हमने शुरुआत की थी कि मृत्यु क्या है और मृत्यु के बाद क्या होता है। धर्म की तरह विज्ञान के पास भी कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि मृत्यु के बाद क्या होता है। न ही विज्ञान के पास यह साबित करने के लिए कोई तथ्य हैं कि मृत्यु के बाद कुछ नहीं होता। विज्ञान सिर्फ इसलिए मानता है कि मृत्यु के बाद कुछ नहीं होता, क्योंकि इसका कोई प्रमाण नहीं है। लेकिन, कई चीजें भी हैं, जिनका प्रमाण नहीं, लेकिन उनका अस्तित्व है।
क्या मृत्यु का डर बेवजह है?
धर्म और वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों ही बताते हैं कि मृत्यु से डरने की कोई जरूरत नहीं है। यह एक शाश्वत प्रक्रिया है। जीवन का होना जितना सत्य है, मृत्यु भी उतनी ही सत्य है।
अगर हम इसे सरल शब्दों में समझें, तो सबसे बुरा जो हो सकता है, वह यह कि हम सो जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे हम हर रात सोते हैं। और सोने में कोई डर नहीं होता। इसलिए, “जब होगा, तब देखा जाएगा” का रवैया रखना शायद बेहतर है। लेकिन क्या इससे भी अच्छा कोई तरीका हो सकता है? शायद अभी हमें अभी उसकी तलाश है।
क्या चेतना (Consciousness) अमर है?
हमने इस लेख की शुरुआत T.S. Eliot की पंक्तियों के साथ की थी। “In my end is my beginning” यानी “मेरे अंत में ही मेरी शुरुआत छिपी है।” यह सिर्फ धार्मिक कथन नहीं है, बल्कि यह सभी नास्तिक और आस्तिक के लिए समान रूप से सत्य है। यह समझने के लिए कि मृत्यु के बाद क्या होता है, हमें यह समझना होगा कि जीवन की शुरुआत कैसे होती है।
हम जानते हैं कि जब हम किसी मोमबत्ती को उलटे गिलास से ढक देते हैं, तो लौ बुझ जाती है। लेकिन इसे समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि आग को जलने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। अगर ऑक्सीजन खत्म हो जाए, तो लौ भी बुझ जाती है।
इसी तरह, अगर हम यह समझ लें कि चेतना (Consciousness) कैसे उत्पन्न होती है, तो हम यह भी समझ सकते हैं कि वह समाप्त होती है या नहीं। अगर चेतना की कोई शुरुआत नहीं है, तो उसका अंत भी नहीं हो सकता। कहने का मतलब कि चेतना कारण और प्रभाव (Cause and Effect) के नियमों से मुक्त हो सकती है।
क्या कोई चीज कारण और प्रभाव से परे हो सकती है?
बिल्कुल! बिग बैंग से पहले ब्रह्मांड ऐसी ही स्थिति में था। उसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं था। कोई स्थान, कोई समय, कोई पदार्थ या ऊर्जा नहीं थी। यह सब अचानक ही अस्तित्व में आ गया, बिना किसी ज्ञात कारण के। इसी तरह, क्वांटम फिजिक्स भी बताती है कि ब्रह्मांड में कई चीजें बिना किसी स्पष्ट कारण के अस्तित्व में आती हैं।
यहां तक कि हमारे विचार भी हमेशा पिछले विचारों से नहीं आते। कई बार वे एक अनजान शून्य से अचानक प्रकट होते हैं। अगर हमें यह नहीं पता कि विचार कहां से आते हैं, तो हम यह भी नहीं जान सकते कि वे कहां जाते हैं।
हम मृत्यु के बाद कहां जाते हैं?
हम फिर से घूम-फिरकर उसी सवाल पर आ गए, जहां से हमने शुरुआत की थी। अगर हम चेतना को अस्तित्व का आधार मानें, तो मृत्यु के बाद कहीं जाने की कोई बात ही नहीं होती। हम हमेशा “यहीं” होते हैं। “अस्तित्व का अंत” केवल एक काल्पनिक धारणा है, जो डर से उपजी है। हम अस्तित्व को समाप्त नहीं कर सकते, क्योंकि अस्तित्व को परिभाषित करने वाली चेतना स्वयं कभी समाप्त नहीं होती।
अगर हम गहराई से सोचें, तो एक नई दृष्टि सामने आती है। हम कहीं नहीं जाते, क्योंकि हमें कहीं जाने की जरूरत ही नहीं है। जीवन और मृत्यु के बारे में हमारी जो भी धारणाएं हैं, वे हमारी चेतना की सीमाओं के भीतर ही बनी हुई हैं। लेकिन यदि हम अपने अस्तित्व की सच्चाई को पहचानें, तो हमें एहसास होगा कि हम पहले से ही “घर” पर हैं। हम इसे कभी छोड़ते नहीं हैं। यही सच्ची शांति की कुंजी है।
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