UPI बार-बार क्यों बंद हो रहा है, डिजिटल इंडिया को किसकी लगी नजर?

UPI भारत में डिजिटल क्रांति की रीढ़ बन चुका है। लेकिन तेज़ी से बढ़ते उपयोग, सर्वर पर भारी लोड और वित्तीय घाटे ने इस सिस्टम को हिला कर रख दिया है। अगर समय रहते समाधान नहीं ढूंढा गया, तो यह पूरे डिजिटल इकोसिस्टम को प्रभावित कर सकता है।

Unified Payment Interface (UPI) आज भारत में सबसे लोकप्रिय और सुविधाजनक डिजिटल पेमेंट माध्यम बन चुका है। चाहे चाय की दुकान हो या ऑनलाइन शॉपिंग, हर जगह UPI का इस्तेमाल आम हो गया है। लेकिन हाल के महीनों में लोगों को एक नई समस्या का सामना करना पड़ रहा है – UPI बार-बार बैठ (डाउन) हो रहा है। कई बार पेमेंट फेल हो जाता है, ट्रांजेक्शन लटक जाता है, या ऐप खुलने में ही समय लगता है।

आखिर क्यों हो रही है यह परेशानी? क्या UPI का सिस्टम कमजोर हो गया है या इसके पीछे कुछ और कारण हैं? चलिए जानते हैं विस्तार से:

1. ट्रांजेक्शन लोड में बेतहाशा बढ़ोतरी

2019 में हर महीने UPI पर लगभग 100 करोड़ ट्रांजेक्शन होते थे। लेकिन 2025 तक यह आंकड़ा 1800 करोड़ ट्रांजेक्शन प्रति माह तक पहुंच गया है। यानी ट्रैफिक 18 गुना बढ़ चुका है।

बढ़ते ट्रैफिक को संभालने के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और सर्वर कैपेसिटी का विकास नहीं हो पाया, यही वजह है कि UPI बार-बार क्रैश हो रहा है। पिछले महीने में ही UPI चार बार बैठ चुका है, जिससे लोगों को काफी असुविधा हुई।

2. UPI का ‘फ्री’ होना – सुविधा भी, समस्या भी

UPI एक फ्री पेमेंट सर्विस है। जब आप किसी को पैसे भेजते हैं तो न तो आपको चार्ज देना पड़ता है और न ही रिसीवर को कुछ मिलता है। वहीं, अगर आप IMPS जैसे विकल्प से पैसे भेजें तो आपको ₹2 से ₹15 तक का चार्ज + GST देना पड़ता है।

अब सोचिए – जब एक सर्विस फ्री है लेकिन उस पर ट्रैफिक बढ़ता जा रहा है, तो खर्च कौन उठा रहा है?

3. बैंकों और पेमेंट कंपनियों को हो रहा है घाटा

जब आप UPI से पेमेंट करते हैं, तो बैंकों और ऐप्स (जैसे PhonePe, Paytm) को कोई पैसा नहीं मिलता। जबकि वे आपके ट्रांजेक्शन को प्रोसेस करने के लिए सर्वर, तकनीक, और स्टाफ का खर्च उठाते हैं।

इसके उलट, जब आप क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करते हैं, तो दुकानदार से 1% से 3% तक MDR (Merchant Discount Rate) वसूली जाती है, जिससे बैंक और कंपनियों को कमाई होती है।

UPI पर MDR नहीं लगता, इसलिए कंपनियों को कोई मुनाफा नहीं होता।

4. सरकार दे रही है सब्सिडी – लेकिन अब वह भी घट रही है

सरकार ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए UPI को फ्री रखा और बैंकों व ऐप्स को सब्सिडी देना शुरू किया। लेकिन अब सब्सिडी कम होती जा रही है, जबकि ट्रांजेक्शन लगातार बढ़ रहे हैं:
2021-22: ₹1,389 करोड़
2022-23: ₹2,210 करोड़
2023-24: ₹3,631 करोड़
2024-25: ₹2,000 करोड़ (अनुमानित)
2025-26: ₹437 करोड़ (अनुमानित)

सब्सिडी में यह गिरावट इस ओर इशारा कर रही है कि सरकार भविष्य में बड़े ट्रांजेक्शन पर चार्ज लगाने का फैसला कर सकती है।

5. GST और MDR को लेकर असमंजस

हाल में सरकार ने यह स्पष्ट किया कि UPI पर कोई MDR नहीं लगेगा, इसलिए GST लगाने का भी सवाल नहीं उठता। लेकिन ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि जिन व्यापारियों या कंपनियों का सालाना टर्नओवर ₹40 लाख से ज्यादा है, उन पर MDR लगाने की योजना पर विचार किया जा रहा है।

इससे छोटे व्यापारी तो राहत में रहेंगे, लेकिन बड़े व्यापारियों पर असर पड़ सकता है।

6. भविष्य क्या कहता है?

बढ़ते ट्रैफिक और घटती सब्सिडी के बीच अब दो ही रास्ते बचते हैं:

या तो सरकार सब्सिडी देती रहे

अगर सरकार डिजिटल इंडिया को पूरी तरह सफल बनाना चाहती है, तो उसे बैंकों और ऐप्स को भरपूर सब्सिडी देनी होगी।

या फिर UPI पर कुछ ट्रांजेक्शन पर चार्ज लगे

यह संभावना भी जताई जा रही है कि ₹2000 से ऊपर के ट्रांजेक्शन पर ₹2 से ₹5 तक का नाममात्र चार्ज लगाया जा सकता है, ताकि सिस्टम की लागत की भरपाई हो सके।

Shubham Singh
Shubham Singh
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