Explainer: दिल्ली में क्यों हारी केजरीवाल की AAP, बीजेपी को कैसे मिली सत्ता, 10 प्वाइंट में समझिए पूरी तस्वीर

Delhi Election Result 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP) 10 साल बाद सत्ता से बाहर हो गई है। 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की AAP को सिर्फ 22 सीटें मिलीं। वहीं, बीजेपी ने 48 सीटें जीतकर 27 साल बाद सत्ता में वापसी की है। वहीं, कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका। आइए 10 प्वाइंट में जानते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार और बीजेपी की जीत के पीछे कौन-से कारण जिम्मेदार रहे।

कांग्रेस से गठबंधन न करना

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव को दिल्ली में मिलकर लड़ा था। लेकिन, विधानसभा चुनाव के लिए दोनों पार्टियों ने गठबंधन नहीं किया। इससे जनता के बीच गलत संदेश गया।

इसका असर: आप और कांग्रेस में गठबंधन न होने से बीजेपी को फायदा मिला। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 14 सीटें ऐसी रहीं, जहां AAP की हार का अंतर कांग्रेस को मिले वोटों से कम था। कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में 4.26 फीसदी वोट मिला, जो इस बार बढ़कर 6.34 फीसदी हो गया। इससे AAP को नुकसान और बीजेपी को भरपूर फायदा हुआ।

सत्ता विरोधी लहर (Anti-Incumbency)

दिल्ली की जनता ने 2015 और 2020 में AAP को भारी बहुमत दिया था, लेकिन 10 साल की सरकार के बाद सत्ता विरोधी लहर तेज हो गई। लंबे समय तक कोई भी सरकार सत्ता में रहे, तो जनता बदलाव चाहती है।

इसका असर: दिल्ली के मतदाताओं ने AAP से अलग विकल्प तलाशना शुरू किया, जिससे पार्टी का वोट शेयर घटा। बीजेपी ने काफी अच्छे तरीके से भुनाया।

भ्रष्टाचार के आरोप (AAP Corruption cases)

AAP के बड़े नेताओं- अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और सत्येंद्र जैन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। चारों नेता काफी समय तक जेल में रहे। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया और आतिशी मार्लेना को मुख्यमंत्री बनाया। शराब नीति के अलावा AAP परट्रांसपोर्ट और हेल्थ सेक्टर में घोटाले के आरोप लगे।

इसका असर: भ्रष्टाचार के मुद्दे ने AAP की “ईमानदार पार्टी” वाली छवि को नुकसान पहुंचाया। AAP का जन्म ही भ्रष्टाचार के खिलाफ उठे अन्ना हजारे आंदोलन से हुआ था। विरोधियों ने इस पर जमकर हमला बोला।

आतिशी मार्लेना को मुख्यमंत्री बनाना

अरविंद केजरीवाल ने शराब नीति घोटाले में जमानत पर छूटने के बाद मुख्यमंत्री पद से हट गए। उन्होंने आतिशी मार्लेना को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन, आतिशी मतदाताओं को साधने में असफल रहीं, खासकर महिला वोटरों को। आतिशी की जमीनी स्तर पर ज्यादा मजबूत पकड़ भी नहीं थी, जिसका आम आदमी पार्टी को नुकसान हुआ।

इसका असर: जनता आतिशी को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं कर पाई। इससे जनता के बीच यह भी संदेश गया कि कहीं न कहीं केजरीवाल गलत हैं, इसीलिए उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ा।

पूर्वांचली वोटरों की नाराजगी

दिल्ली में पूर्वांचल से आए 40 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। AAP सरकार के छठ पूजा आयोजन से जुड़े फैसलों पर काफी विवाद हुआ। खासकर, यमुना के प्रदूषित में छठ पूजा करने से पूर्वांचली वोटर काफी नाराज हुआ। बीजेपी ने पूर्वांचली वोटरों को साधने के लिए मनोज तिवारी जैसे नेताओं को आगे रखा।

इसका असर: पूर्वांचली समुदाय AAP से नाराज हुआ। उसने अन्य पार्टियों की ओर रुख किया। जो वोटर बीजेपी की ओर नहीं गए, उन्होंने कांग्रेस को वोट दिया। इससे कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा, बीजेपी की जीत की राह खुली।

आंतरिक गुटबाजी और नाराजगी

AAP ने इस बार 16 विधायकों के टिकट काटे, जिससे पार्टी में नाराजगी बढ़ी। कई नेता और कार्यकर्ता पार्टी से अलग हो गए या निष्क्रिय हो गए। इसमें कैलाश गहलोत और राजेंद्र पाल गौतम प्रमुख हैं। ये दोनों ही नेता कभी आम आदमी पार्टी का प्रुमख चेहरा हुआ करते थे। योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कपिल मिश्रा और स्वाति मालीवाल जैसे पुराने नेताओं की विदाई पहले ही AAP की छवि को प्रभावित कर चुकी थी। इससे मतदाताओं में संकेत गया कि पार्टी में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है और वहां पर नेतृत्व संकट चल रहा है।

इसका असर: इससे AAP की चुनावी मशीनरी कमजोर पड़ी और कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरा। AAP के ग्राउंड-लेवल कार्यकर्ताओं में जोश की कमी दिखी। इसका फायदा विपक्षी पार्टियों को मिला।

केंद्र से टकराव की रणनीति उलटी पड़ी

AAP सरकार ने लगातार केंद्र सरकार से टकराव का रुख अपनाया। जैसे कि उपराज्यपाल (LG) और अरविंद केजरीवाल के बीच टकराव, दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार को निशाना बनाना, जरूरी विकास कार्य न होने के लिए केंद्र सरकार को कोसना। साथ ही, पीएम किसान योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं को दिल्ली में लागू न करना।

इसका असर: कई मतदाताओं को यह लगा कि AAP विकास से ज्यादा राजनीति में उलझी रही। वह केंद्र की जरूरी विकास योजनाओं को भी लागू नहीं कर रही है। यही वजह है कि उन्होंने दूसरी पार्टी को मौका देने का फैसला किया, जिसका बीजेपी को फायदा मिला।

अधूरे वादे और विकास कार्य न होना

AAP ने 2015 और 2020 में बड़े वादे किए थे, लेकिन उनमें से कुछ ही पूरे हुए। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का वादा अधूरा रहा। बसों में मार्शल की नियुक्ति और महिला सुरक्षा योजनाएं पूरी तरह लागू नहीं हुईं। यमुना सफाई और प्रदूषण नियंत्रण जैसे मुद्दों पर सरकार की नीतियां असफल रहीं।

इसका असर: मतदाताओं का अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से भरोसा उठा। वे लोग विकास के नए विकल्प तलाशने लगे।

शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में विवाद

AAP सरकार की शिक्षा और स्वास्थ्य नीतियां चर्चा में रहीं, लेकिन इन पर भी सवाल उठे। जैसे कि सरकारी स्कूलों की इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने के बावजूद शिक्षकों की भर्ती में देरी हुई। मोहल्ला क्लीनिक प्रोजेक्ट की धीमी रफ्तार ने भी नकारात्मक असर डाला। विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि

इसका असर: लोगों को लगा कि AAP सरकार के दावे जमीनी हकीकत से अलग हैं। इससे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के खिलाफ माहौल बनने लगा।

बीजेपी की आक्रामक चुनावी रणनीति

बीजेपी ने जमीनी स्तर पर काफी काम किया। उसने भ्रष्टाचार और यमुना की सफाई जैसे मुद्दों पर आप को काफी अच्छे से घेरा। उसने दमदार कैंडिडेट उतारे और आक्राम तरीके से चुनाव प्रचार किया। मोदी सरकार की लोकप्रिय योजनाओं (PM आवास योजना, उज्ज्वला योजना, और जनधन योजना) का लाभ बीजेपी को मिला। साथ ही, पीएम किसान योजना और आयुष्मान भारत योजना का लाभ मिलने की उम्मीद में वोटर बीजेपी से जुड़े। चुनाव से बजट में 12 लाख की इनकम को टैक्स फ्री करने और 8वें वेतन आयोग को मंजूरी देने से भी बीजेपी को फायदा हुआ।

इसका असर: AAP का ट्रेडिशनल वोट बैंक टूटने लगा। खासकर, मिडिल क्लास का बड़ा हिस्सा उससे छिटक गया, जो फ्री बिजली और पानी के लिए उसे वोट दे रहा था।

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Piyush Kumar
Piyush Kumar

पीयूष कुमार एक अनुभवी बिजनेस जर्नलिस्ट हैं, जिन्होंने Banaras Hindu University (BHU)
से शिक्षा ली है। वे कई प्रमुख मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। वित्त, शेयर बाजार और निवेश रणनीतियों पर उनकी गहरी पकड़ है। उनकी रिसर्च-बेस्ड लेखनी जटिल फाइनेंशियल विषयों को सरल और प्रभावी रूप में प्रस्तुत करती है। पीयूष को फिल्में देखने और क्रिकेट खेलने का शौक है।

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