
Manmohan Singh न होते तो क्या 1991 में दिवालिया हो जाता भारत?
Indian Economic Reforms 1991: ‘धरती की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसके पनपने का वक्त आ गया हो।’ फ्रांसीसी चिंतक विक्टर ह्यूगो (Victor Hugo) की इन्हीं पंक्तियों के साथ साल 1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने अपना बजट भाषण शुरू किया था। उस वक्त के लिए इससे बेहतर कोई लाइन भी नहीं हो सकती थी।
दरअसल, उस समय की अर्थव्यवस्था डूबने के कगार पर थी। भारत दिवालिया होने से बस चंद कदम उदार था। देश का खर्च चलाने के लिए सोना गिरवी रखकर कर्ज लेना पड़ा था। उस समय मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था को संभाला और उस भारत की नींव रखी, जो आज दुनिया पांच सबसे बड़ी इकोनॉमी में शामिल है। 91 साल के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Former PM Manmohan Singh Passes Away) का गुरुवार (26 दिसंबर) देर रात दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। आइए जानते हैं कि उन्होंने बतौर वित्त मंत्री भारतीय अर्थव्यवस्था को नया जीवनदान कैसे दिया था।
भारत की अर्थव्यवस्था डूबने के कगार पर कैसे पहुंची थी?
दरअसल, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का मानना है कि कंपनियों पर सरकारी अंकुश जरूरी है। उनके बाद की सरकारों ने भी इसी फलसफे को आगे बढ़ाया। नतीजा यह हुआ कि देश में लाइसेंस परमिट राज आ गया। इसका मतलब था कि सरकार की इजाजत लिए बगैर कोई काम नहीं हो सकता था। इससे देश में निवेश और उद्योग-धंधे का माहौल खराब हो गया। सरकारें लोकलुभावन नीतियों पर जमकर खर्च भी कर रही थीं, जिससे सरकारी खजाना भी खाली हो गया। 1990 में तो सरकार को अपने खर्च चलाने के लिए सोना तक गिरवी रखना पड़ गया। विदेशी मुद्रा भंडार तो इतना कम हो गया था कि उससे बस दो हफ्ते का ही आयात का खर्च पूरा हो पाता।
मनमोहन सिंह ने भारत की इकोनॉमी को कैसे संभाला?
1991 के चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई और नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। राव की गिनती देश के सबसे सुलझे नेताओं में होती थी। उनकी सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह बने। मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाने का मकसद था कि भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी वैश्विक संस्थाओं से बेहतर तरीके से सौदेबाजी कर पाए। साथ ही, मनमोहन के वित्त मंत्री बनने से अंतरराष्ट्रीय बैंकों का भरोसा भी भारत में बढ़ता और वे आसानी से हमें कर्ज देते। मनमोहन सिंह बतौर आरबीआई गवर्नर देश की इकोनॉमी को काफी करीब से देख भी चुके थे।
मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था का उदारीकरण कैसे किया?
बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह अपना पहला बजट 24 जुलाई 1991 (Economic Reforms of India 1991) को पेश किया, जिसे देश के इतिहास का सबसे क्रांतिकारी बजट माना जाता है। मनमोहन सिंह ने बजट में लाइसेंस परमिट राज को खत्म कर दिया। अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया और इसे दुनियाभर की कंपनियों (Globalisation in India) के लिए खोल दिया। नियम-कानून से जुड़ी अड़चनें भी कम की। इससे घरेलू निजी कंपनियां ने निवेश बढ़ाया। विदेशी कंपनियां भी भारत में कारोबार जमाने के लिए आने लगीं। इससे सिस्टम में पैसा आया और इकोनॉमी दौड़ने लगी। भारी पैमाने पर नए रोजगार पैदा हुए। बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए।
1991 के बजट मनमोहन सिंह क्या खास किया?
- मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण करके निवेश का माहौल बेहतर किया।
- उन्होंने लाइसेंसिंग राज खत्म किया। इससे दुनिया का भारत पर भरोसा बढ़ा।
- आयात-निर्यात नीति में बदलाव करके भारत के व्यापार को प्रतिस्पर्धी बनाया।
- विदेशी निवेश के रास्ते खोले, जिससे निवेश और नौकरियों में बढ़ोतरी हुई।
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