
India Pakistan War: क्या भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान के साथ हैं अमेरिका और पश्चिमी देश?
IMF Support to Pakistan: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने शुक्रवार (9 मई 2025) देर रात पाकिस्तान (IMF Support to Pakistan) को 1.1 अरब डॉलर की अगली किस्त जारी करने की मंजूरी दे दी। इसके कुछ ही घंटे बाद भारत के आसमान में पाकिस्तानी मिसाइलें और ड्रोन नजर आए। इससे सवाल उठता है कि क्या अमेरिका और पश्चिमी देशों के समर्थन वाला IMF पिछले रास्ते से पाकिस्तान के आतंकवाद को समर्थन दे रहा है। साथ ही, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध में क्या अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी पाकिस्तान के साथ हैं?
IMF की मदद पर भारत सरकार की राय?
News18 की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने IMF से पाकिस्तान को आर्थिक मदद मिलने को ‘पूर्व नियोजित रणनीति’ बताया। उनके मुताबिक, “पाकिस्तान को पिछले कुछ दशकों में 25 से अधिक अंतरराष्ट्रीय राहत पैकेज मिले हैं। लेकिन हर बार इन राहतों के बाद सीमा पार गोलीबारी, आतंकी हमले और छद्म युद्ध की घटनाएं तेज हुई हैं। इतिहास खुद को दोहरा रहा है।”
उन्होंने कहा, “आर्थिक संकट पाकिस्तान को कुछ समय के लिए बातचीत की मेज पर ला सकता है, लेकिन वित्तीय राहत मिलते ही उसकी सैन्य हिम्मत लौट आती है- और साथ ही बढ़ जाती है टकराव की भूख।”
भारत के विरोध के बीच वैश्विक चुप्पी
भारत पहले ही IMF के इस राहत पैकेज का विरोध कर चुका है। उसकी दलील थी कि पाकिस्तान इन फंड्स का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों और सीमा पार तनाव बढ़ाने में करता है। भारत के वरिष्ठ राजनयिकों ने अमेरिका और ब्रिटेन में दिए गए सार्वजनिक बयानों और मीडिया साक्षात्कारों में पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी संगठनों को दी जा रही मदद के फोटो और दस्तावेज भी पेश किए हैं। इनमें पाकिस्तान सेना के अफसरों को वैश्विक रूप से प्रतिबंधित आतंकियों के साथ खड़े दिखाया गया है।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तीखी प्रतिक्रिया में कहा, “मुझे समझ नहीं आता कि जब IMF पाकिस्तान को आर्थिक राहत दे रहा है, तो वैश्विक समुदाय को कैसे लगता है कि इससे उपमहाद्वीप में तनाव घटेगा? IMF तो जैसे पाकिस्तान को मुआवज़ा दे रहा है उन गोले-बारूदों के लिए, जिनसे वह पुंछ, राजौरी, उरी और तंगधार जैसे इलाकों को तबाह कर रहा है।”
IMF आर्थिक मदद दे रहा या सैन्य साहस?
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की तरफ से अक्टूबर 2024 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2023–24 के स्टैंड-बाय अरेंजमेंट (SBA) ने पाकिस्तान को स्थिरता की ओर लौटने में मदद की है, लेकिन देश की संरचनात्मक कमजोरियां अब भी बनी हुई हैं। नया प्रशासन घरेलू सुधारों पर काम कर रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत अलग है।
केंद्र सरकार के एक सूत्र ने बताया, “IMF ने टैक्स सुधारों, सब्सिडी कटौती और ऊर्जा कीमतों में वृद्धि की शर्त रखी थी, और पाकिस्तान ने कागज पर इन शर्तों को पूरा भी किया। लेकिन रक्षा खर्च पर कोई असर नहीं पड़ा। पाकिस्तान सरकार के बजटीय दस्तावेज़ बताते हैं कि अगले वित्त वर्ष में सैन्य बजट में 18% तक की बढ़ोतरी हो सकती है, जबकि स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक कल्याण योजनाएं पिछड़ रही हैं।”
अब IMF भी कठघरे में खड़ा है
यह घटनाक्रम IMF की भूमिका और उसकी शर्तों की वैधता पर भी सवाल खड़े करता है। क्या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान बिना किसी सख्त निगरानी के ऐसे फंड जारी कर सकते हैं? क्या यह जरूरी नहीं कि ऐसे पैकेज जारी करते समय सशस्त्र गतिविधियों और विदेश नीति पर निगरानी की पुख्ता व्यवस्था हो?
जवाब अभी बाकी है। लेकिन जब तक इन राहतों के साथ सख्त शर्तें और पारदर्शिता नहीं जोड़ी जातीं, तब तक दुनिया एक खतरनाक चक्र को दोहराते हुए देखती रहेगी- जहां आर्थिक राहत के बाद आते हैं मिसाइल, और सुधार की जगह दिखती है दंभी चुनौती। सवाल अमेरिका और पश्चिमी देशों पर भी उठेंगे, जिन्होंने IMF को खड़ा किया है।
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