
India-US Tariff Dispute Explained: ट्रंप लगातार कर रहे बेइज्जत, लगा रहे झूठे आरोप; आखिर खामोश क्यों है भारत?
India US Tariff Dispute: व्यापार जगत में भारत का प्रतीक हाथी और अमेरिका का बाल्ड ईगल (Bald Eagle) है। बाल्ड ईगल की तरह अमेरिका की नजर भारत के कृषि और ऑटो सेक्टर का शिकार करने पर है। इससे अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंधों में नए मोड़ आ रहे हैं। अमेरिका भारत (US-India Trade War) पर दबाव बना रहा है कि वह कृषि क्षेत्र को खोले और एक बड़े व्यापार समझौते पर सहमत हो।
अमेरिका के वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक का कहना है कि भारत को अपने कृषि क्षेत्र को अमेरिका के लिए खोलना ही होगा, क्योंकि यह किसी भी व्यापारिक वार्ता में ‘टेबल से बाहर’ नहीं हो सकता। लेकिन क्या यह भारत के हित में है? क्या भारत को डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन (Donald Trump India Trade) की मांगों को मान लेना चाहिए या अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए? आइए, इस पूरे मामले को समझते हैं।
भारत पर इतना दबाव क्यों बना रहा अमेरिका?
अमेरिका लंबे समय से भारत के साथ एक व्यापक व्यापार समझौते (Comprehensive Trade Agreement) की मांग कर रहा है। ट्रंप प्रशासन चाह रहा है कि यह समझौता सिर्फ टैरिफ में कटौती तक सीमित न रहे, बल्कि इसमें सरकारी खरीद, कृषि सब्सिडी, पेटेंट कानूनों में छूट और डेटा फ्लो पर नियंत्रण हटाने जैसे मुद्दे भी शामिल हों।
अमेरिका का मुख्य फोकस भारतीय कृषि बाजार खोलने पर है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था में कृषि एक बड़ा व्यापारिक क्षेत्र है। 2024 में अमेरिका के कृषि निर्यात 176 अरब डॉलर तक पहुंच गए थे, जो कि उसके कुल माल निर्यात का लगभग 10% है। बड़ी अमेरिकी फार्म कंपनियां भारत को एक लाभदायक बाजार के रूप में देखती हैं। लेकिन भारत में कृषि केवल एक उद्योग नहीं, बल्कि 70 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है। वहीं, अमेरिका में सिर्फ 70 लाख किसानों का घर खेती से चलता है। ऐसे में भारत को अपने किसानों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए फैसला लेना होगा।
अगर भारत कृषि क्षेत्र खोलता है, तो इसका क्या प्रभाव होगा?
भारत ने अपने कृषि क्षेत्र को अभी तक मध्यम से उच्च टैरिफ लगाकर बचा रखा है। इससे स्थानीय किसानों को अमेरिका या यूरोप की मल्टीनेशनल कंपनियों से गलाकाट प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती। अगर अमेरिका का दबाव मान लिया जाता है और आयात शुल्क हटा दिए जाते हैं, तो सस्ते अमेरिकी कृषि उत्पाद भारतीय बाजार में आ जाएंगे। इससे स्थानीय किसानों की आय और रोजगार पर असर पड़ेगा। यह चीज इसलिए भी अहम है, क्योंकि भारतीय किसान लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
GTRI (ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव) के फाउंडर अजय श्रीवास्तव का कहना है, “अगर भारत कृषि क्षेत्र में अमेरिकी सब्सिडी वाले उत्पादों को खुला बाजार देता है, तो यह भारतीय किसानों की आत्मनिर्भरता के लिए गंभीर खतरा होगा। 90% से अधिक वैश्विक खाद्य व्यापार पर कुछ मल्टीनेशनल कंपनियों का नियंत्रण है, जो आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीतियां अपनाती हैं। अगर भारत अपने कृषि बाजार की सुरक्षा नहीं करता, तो यह पूरी अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर राजनीतिक और आर्थिक संकट को जन्म दे सकता है।”
क्या ट्रंप का भारत को ‘टैरिफ किंग’ कहना सही है?
भारत कृषि उत्पादों पर 0% से 150% तक का शुल्क लगाता है। हालांकि, ट्रंप भारत को ‘टैरिफ किंग’ कहते हैं, जो कि सरासर गलत है। भारत कुछ ही उत्पादों, जैसे कि शराब (150%) और कारों (100%) पर उच्च शुल्क लगाता है। वहीं, अमेरिका भी कुछ कृषि उत्पादों पर ऊंचे शुल्क लगाता है, जैसे कि तंबाकू पर 350%। भारत में बादाम पर ₹35 प्रति किलो (5% टैक्स), पिस्ता पर 10% और एथनॉल अल्कोहल पर 5% शुल्क लगता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार (7 मार्च 2025) को दावा किया था कि भारत अमेरिकी आयात पर शुल्क घटाने के लिए तैयार हो गया है, क्योंकि उनके प्रशासन ने भारत की “अनुचित व्यापार नीतियों” को उजागर कर दिया। GTRI के अनुसार, “ट्रंप का दावा पूरी तरह गलत है और भारत पर दबाव बनाने के लिए किया गया है। भारत सरकार की चुप्पी चिंताजनक है। पूरी दुनिया देख रही है कि ट्रंप और उनके अधिकारी भारत को रोजाना कैसे नीचा दिखा रहे हैं।”
भारत पर लगातार झूठे आरोप क्यों लगा रहे ट्रंप?
अमेरिका व्यापार घाटे के बारे में लगातार झूठ बोल रहा है। ट्रंप ने दावा किया है कि अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर है। लेकिन, भारत के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार यह केवल 45 अरब डॉलर है। व्हाइट हाउस की फैक्ट शीट में दावा किया गया था कि भारत हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर 100% टैरिफ लगाता है। जबकि सच्चाई यह है कि टैरिफ पहले 50% था और 1 फरवरी को इसे घटाकर 30% कर दिया गया था।
India-US Trade: अमेरिका से भारत का आयात और निर्यात
कैटेगरी | निर्यात होने वाली वस्तु |
आयात होने वाली वस्तु
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रत्न एवं आभूषण | हीरे, चांदी, सोने के आभूषण |
सोना, चांदी, और अन्य कीमती धातुएं
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औषधि उत्पाद | दवाएं, वैक्सीन, फार्मास्यूटिकल्स |
मेडिकल डिवाइस, सर्जिकल उपकरण
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जैविक रसायन | कार्बनिक रसायन, औद्योगिक केमिकल्स |
कार्बनिक रसायन, औद्योगिक पेंट
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कपड़ा और परिधान | सूती, रेशमी वस्त्र, तैयार परिधान | – |
मशीनरी और उपकरण | औद्योगिक मशीनरी, इलेक्ट्रिकल उपकरण |
कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
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लौह एवं इस्पात उत्पाद | स्टील और उससे बने उत्पाद |
स्टील और औद्योगिक धातु उत्पाद
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समुद्री उत्पाद | मछली, झींगा, समुद्री खाद्य पदार्थ | – |
वाहन और ऑटो पार्ट्स | कार, मोटरसाइकिल, और उनके पुर्जे |
विमान, इंजन, एयरोस्पेस उपकरण
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प्लास्टिक और उत्पाद | प्लास्टिक सामग्री और उनसे बने उत्पाद |
प्लास्टिक सामग्री और उनसे बने उत्पाद
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कृषि उत्पाद | चाय, कॉफी, मसाले |
बादाम, सेब, और अन्य फल
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पेट्रोलियम उत्पाद | – |
कच्चा तेल, परिष्कृत तेल
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सोर्स: भारत सरकार, वाणिज्य मंत्रालय (tradestat.commerce.gov.in), अमेरिका व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र (ITC)
भारत को कौन-से कृषि उत्पाद बेचना चाहता है अमेरिका?
2024 में अमेरिका का भारत को कृषि निर्यात 1.6 अरब डॉलर का था। अमेरिका ने खासतौर पर भारत को बादाम ($868 मिलियन), पिस्ता ($121 मिलियन), सेब ($21 मिलियन) और एथनॉल ($266 मिलियन) बेचा था। अमेरिका इसके अलावा भी कई कृषि उत्पाद भारत में बेचना चाहता है, जिन पर वह भारी सब्सिडी देता है।
अगर अमेरिकी कृषि सब्सिडी की बात करें, तो यह चावल (82%), कैनोला (61%), शक्कर (66%), कपास (74%) और ऊन (215%) पर हद से ज्यादा है। अगर भारत ने अपना कृषि क्षेत्र खोल दिया, तो इन भारी सब्सिडी वाले उत्पादों की भारत में भरमार हो जाएगी और भारतीय किसान सीधे प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक पाएंगे।
टैरिफ घटाने से कैसे बर्बाद हो जाएगा भारत का कृषि और ऑटो सेक्टर?
ट्रंप खासतौर पर भारत में कृषि और ऑटो सेक्टर में टैरिफ घटाने की मांग कर रहे हैं, ताकि भारत में अमेरिका की मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए रास्ता खुल सके। लेकिन, इससे भारत के ये दोनों सेक्टर बर्बाद हो सकते हैं, जिनसे लाखों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है।
GTRI ने उदाहरण देते हुए बताया कि ऑस्ट्रेलिया में जब सरकार ने 1980 के दशक में कारों पर आयात शुल्क 45% से घटाकर 5% कर दिया था, तो उनकी घरेलू कार इंडस्ट्री पूरी तरह खत्म हो गई। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कार इंडस्ट्री कुल मैन्युफैक्चरिंग GDP का 33% है, इसलिए इसे बचाना जरूरी है। भारत अमेरिका को सिर्फ 1.3 करोड़ डॉलर मूल्य की यात्री कारें निर्यात करता है, ऐसे में यदि अमेरिका भारतीय कारों पर शुल्क बढ़ा भी दे, तो इससे भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
2023-24 में भारत-अमेरिका व्यापार संतुलन
- कुल व्यापार: 119.71 अरब डॉलर
- भारत का निर्यात: 77.51 अरब डॉलर
- भारत का आयात: 42.19 अरब डॉलर
- भारत का लाभ: 35.31 अरब डॉलर
भारत पर दबाव: क्या कह रहे हैं ट्रंप और उनके अधिकारी?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया कि भारत ने अमेरिकी दबाव में आकर अपने आयात शुल्क में कटौती करने का फैसला किया है। हालांकि, भारतीय सरकार ने इस दावे की पुष्टि नहीं की है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप का यह बयान भारत को दबाव में लाने की रणनीति हो सकती है।
GTRI की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका भारत से केवल टैरिफ में कटौती नहीं, बल्कि सरकारी खरीद, बौद्धिक संपदा कानून, कृषि सब्सिडी और डेटा सुरक्षा जैसे कई मुद्दों पर समझौते की मांग कर रहा है। GTRI रिपोर्ट के अनुसार, “ट्रंप पहले भी व्यापार समझौतों की अनदेखी कर चुके हैं। उन्होंने 2019 में US-Mexico-Canada FTA को खुद फाइनल करने के बाद खत्म कर दिया और अब कनाडा और मैक्सिको से आयात पर 25% टैरिफ लगा दिया है। इससे साफ है कि वे भारत के साथ भी ऐसा कर सकते हैं।”
क्या कह रहे हैं भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल?
भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में वॉशिंगटन का दौरा किया और वहां अमेरिकी अधिकारियों के साथ व्यापार वार्ता की। इस दौरान उन्होंने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) जेमीसन ग्रीर और वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक से मुलाकात की। इस दौरे की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में अमेरिका यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
गोयल का कहना है कि भारत और अमेरिका व्यापार समझौते पर बातचीत जारी रखेंगे, लेकिन भारत किसी भी तरह का ऐसा समझौता नहीं करेगा जो राष्ट्रीय हितों के खिलाफ हो। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि भारत अपने कृषि बाजार, सरकारी खरीद और पेटेंट नियमों पर कोई भी ऐसा समझौता नहीं करेगा जिससे भारतीय उद्योगों और किसानों को नुकसान हो।
ट्रंप के दबाव पर भारत को क्या करना चाहिए?
आर्थिक थिंक टैंक GTRI का सुझाव है कि ट्रंप दादागीरी दिखा रहे हैं। ऐसे में भारत को जैसे को तैसा वाली रणनीति अपनानी चाहिए और ट्रंप के दबाव में नहीं आना चाहिए। GTRI ने कुछ सुझाव भी दिए हैं।
- अमेरिका से सभी व्यापार वार्ताओं से हट जाना चाहिए और ट्रंप प्रशासन के साथ उसी तरह पेश आना चाहिए जैसे चीन और कनाडा कर रहे हैं।
- भारत को ‘Zero-for-Zero’ टैरिफ डील पर जोर देना चाहिए, जहां केवल उन्हीं इंडस्ट्रियल गुड्स पर टैरिफ हटे, जिन पर अमेरिका भी टैरिफ खत्म करे।
- कृषि और ऑटोमोबाइल सेक्टर को इस समझौते से बाहर रखना चाहिए, क्योंकि ये दोनों भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।
- भारत को किसी भी एकतरफा व्यापार समझौते से बचना चाहिए, क्योंकि अमेरिका का रिकॉर्ड दिखाता है कि वह बाद में खुद ही समझौतों को बदल सकता है।
भारत के लिए अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों को मजबूत करना जरूरी है, लेकिन उसे अपने राष्ट्रीय हितों और किसानों की आजीविका के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। ट्रंप प्रशासन जिस ‘ग्रैंड ट्रेड डील’ की बात कर रहा है, वह भारत के लिए कई खतरनाक शर्तें ला सकती है। भारत को अपनी रणनीति सोच-समझकर बनानी होगी और अमेरिका के दबाव में आकर कोई भी जल्दबाजी में फैसला नहीं लेना चाहिए।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
- क्या भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौते से हट जाना चाहिए?
जवाब: विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक अमेरिका उचित शर्तों पर बातचीत नहीं करता, भारत को इस वार्ता से अलग हो जाना चाहिए। - क्या भारत को कृषि बाजार खोलना चाहिए?
जवाब: नहीं, क्योंकि यह 700 मिलियन भारतीयों की आजीविका से जुड़ा हुआ है। अगर सस्ते अमेरिकी कृषि उत्पाद भारतीय बाजार में आते हैं, तो यह स्थानीय किसानों के लिए खतरा होगा। - भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का क्या कहना है?
जवाब: गोयल ने साफ कर दिया है कि भारत ऐसा कोई व्यापार समझौता नहीं करेगा जो राष्ट्रीय हितों के खिलाफ हो। - क्या अमेरिका की मांगें भारत के लिए नुकसानदायक हैं?
जवाब: हां, क्योंकि अमेरिका केवल टैरिफ में कटौती ही नहीं, बल्कि कृषि बाजार खोलने, डेटा सुरक्षा हटाने और सरकारी खरीद नीति में बदलाव की मांग कर रहा है।
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