
शेयर बाजार के इतिहास की 7 सबसे बड़ी गिरावट; क्या मिला सबक, आगे क्या होगा?
मनीसनी डेस्क, नई दिल्ली। Biggest Stock Market Crashes in India: भारतीय शेयर बाजार का इतिहास काफी पुराना है। सेंसेक्स की शुरुआत 1986 में हुई थी, वहीं निफ्टी 1994 में शुरू हुआ। अपने दशकों के सफर में भारतीय शेयर बाजार ने कई बड़े उतार-चढ़ाव देखे हैं। समय-समय पर वैश्विक और घरेलू घटनाओं ने बाजार की नींव तक हिला दी। इससे निवेशकों को भारी नुकसान भी झेलना पड़ा। हालांकि, हर बार बाजार गिरता है, छटपटाता है और फिर धूल झाड़कर खड़ा हो जाता है। यही वजह है कि भारतीय बाजार ने 15.50 फीसदी के कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) के साथ अपनी मजबूती दिखाई है। आइए भारतीय बाजार की बड़ी गिरावटों के बारे में समझते हैं। साथ ही, यह भी जानेंगे कि उससे निवेशकों को क्या सबक मिला और भारतीय बाजार की आगामी संभावनाएं क्या हैं।
2020: कोविड-19 महामारी (-38%)
कारण: कोविड-19 महामारी (Corona Pandemic) के कारण पूरी दुनिया लॉकडाउन में चली गई, जिससे आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं। इसका शेयर बाजार पर काफी बुरा असर पड़ा और यह 38 फीसदी तक गिर गया।
प्रभाव: बाजार में भारी बिकवाली हुई। GDP में गिरावट आई। बेरोजगारी दर में भी भारी इजाफा हुआ।
रिकवरी: सरकार और आरबीआई के राहत पैकेज और टीकाकरण अभियान के चलते हालात सामान्य हुए। फिर 2021 तक बाजार नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया।
2008-09: सब-प्राइम संकट (-61%)
कारण: अमेरिकी बैंकों ने जनता को अन-सिक्योर्ड लोन बांटा। इससे बैंकिंग सेक्टर पर काफी बुरा असर है। अमेरिका के सबसे बड़े बैंकों में शुमार लीमैन ब्रदर्स दिवालिया हो गया। सब-प्राइम संकट (Subprime Crisis) ने अमेरिका के साथ दुनियाभर के शेयर बाजारों को झकझोर दिया। इस संकट ने भारतीय बाजार 61 फीसदी तक तोड़ दिया।
प्रभाव: दुनियाभर में आर्थिक मंदी (Global economic recession) आ गई। विदेशी निवेशकों ने भारी बिकवाली की।
रिकवरी: भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव काफी मजबूत थी। सरकार ने कई आर्थिक भी सुधार किए। इससे 2010 से शेयर बाजार दोबारा उभरने लगा।
2000-01: डॉट-कॉम बबल (-56%)
कारण: डॉट-कॉम बूम (dot-com boom) के साथ निवेशकों ने इंटरनेट कंपनियों में भारी निवेश किया। लेकिन, आईटी कंपनियां उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं दे पाईं, जिससे बाजार क्रैश हो गया। इससे भारतीय शेयर बाजार 56 फीसदी तक क्रैश हो गया।
प्रभाव: टेक कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई। निवेशकों की लाखों करोड़ की पूंजी डूब गई। कई निवेशक दिवालिया हो गए।
रिकवरी: आईटी सेक्टर में नई रणनीतियां बनी। बेहतर मैनेजमेंट से हुआ। इससे निवेशकों का बहाल हुआ और फिर धीरे-धीरे बाजार मजबूत हुआ।
1998-99: भारत पर वैश्विक प्रतिबंध (-35%)
कारण: भारत के पोखरण परमाणु परीक्षण (Pokhran Nuclear Test) किया। इससे नाराज होकर अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देशों ने भारत पर कई प्रतिबंध लगा दिए। इससे शेयर बाजार 35 फीसदी तक गिर गया।
प्रभाव: विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकालने लगे। नया निवेश भी आना बंद हो गया। इससे भारत में आर्थिक मंदी आ गई।
रिकवरी: 1999 में नई सरकार के सुधारों और वैश्विक समर्थन से बाजार ने वापसी की।
1992-94: हर्षद मेहता घोटाला (-54%)
कारण: देश के सबसे चर्चित स्कैमर हर्षद मेहता (Harshad Mehta scam )ने शेयर बाजार में मनी मार्केट घोटाला और धोखाधड़ी की। इससे निवेशकों का भरोसा टूटा और शेयर बाजार 54 फीसदी तक गिर गया।
प्रभाव: निवेशकों का भरोसा डिगा। इससे बैंकिंग सेक्टर पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
रिकवरी: सेबी (SEBI) ने सख्त नियम लागू किए। इससे बाजार में पारदर्शिता बढ़ी और निवेशकों का मार्केट पर भरोसा वापस बहाल हुआ।
1990: खाड़ी युद्ध (-39%)
कारण: इराक-कुवैत युद्ध या खाड़ी युद्ध (Iraq-Kuwait War or Gulf War) के कारण वैश्विक बाजार में अनिश्चितता आई। इसने भारत को भी बुरा तरह से प्रभावित किया। खासकर, कच्चे तेल के आयात को। इससे महंगाई बढ़ी और बाजार 39 फीसदी तक गिर गया।
प्रभाव: तेल की कीमतों में भारी उछाल आया। मुद्रास्फीति बढ़ गई। लोगों ने जरूरी चीजें खरीदनी भी कम कर दी, जिससे कंपनियों का मुनाफा घट गया।
रिकवरी: युद्ध खत्म होने के बाद धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हुई। फिर शेयर मार्केट ने दोबारा बाउंसबैंक किया।
1986-88: वैश्विक वस्तु मूल्य गिरावट (-41%)
कारण: वैश्विक वस्तु बाजार (Global commodity price drop) में भारी गिरावट आई। दुनियाभर के देशों के आयात-निर्यात पर बुरा असर पड़ा। यह पहली दफा था, जब भारतीय शेयर बाजार क्रैश हुआ। उस दौरान 41 फीसदी की गिरावट आई थी।
प्रभाव: कृषि और औद्योगिक क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा था। डिमांड भी काफी कम हो गई थी।
रिकवरी: सरकारी सुधारों और नई व्यापार नीतियों से अर्थव्यवस्था में सुधार आया। फिर शेयर बाजार वापस रिकवर हुआ।
शेयर बाजार के क्रैश से क्या सबक मिला?
स्टॉक मार्केट एक अंतराल के बाद अक्सर बुरी तरह क्रैश (Stock Market Crash) होता है। हमेशा कारण भी अल-अलग होता है। लेकिन, हर गिरावट के बाद बाजार देर-सबेर वापसी करता है। इससे पता चलता है कि लॉन्ग टर्म निवेश करना हमेशा फायदेमंद रहता है। वहीं, शॉर्ट टर्म इन्वेस्टर ऐसे क्रैश में बुरी तरह हाथ जला बैठते हैं। हालांकि, निवेशकों के लिए डायर्विसीफाइड पोर्टफोलियो बनाना जरूरी है, ताकि अगर किसी एक ही सेक्टर में क्रैश हो, तो उससे बचा जा सके। साथ ही, पैनिक सेलिंग यानी घबराहट में आकर बिकवाली करने से बचना चाहिए और गिरावट को अवसर के तौर पर लेना चाहिए। सरकार और केंद्रीय बैंक के नीतिगत फैसले बाजार की रिकवरी में अहम भूमिका निभाते हैं।
गिरावट के मौजूदा दौर में क्या करना चाहिए?
शेयर मार्केट के जानकारों का मानना है कि निवेशकों को जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। खासकर, पैनिक होकर तो बिल्कुल भी नहीं। एक्सपर्ट का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है, जिससे आगे चलकर बाजार में स्थिरता आ सकती है। डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं से बाजार को फायदा होगा। अगर वैश्विक मंदी नहीं आती, तो भारतीय शेयर बाजार अगले 10 वर्षों में भी मजबूत प्रदर्शन कर सकता है। लॉन्ग टर्म निवेशकों को गिरावट में घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसे खरीदारी के अवसर के रूप में देखना चाहिए। हालांकि, उन्हें कोई भी निवेश करने से फाइनेंशियल एक्सपर्ट की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
सोर्स: BSE (Bombay Stock Exchange)
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